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सम्मइसुत्तं
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द्रव्यार्थिक इति तस्मान् नास्ति नयो नियमशुद्धजातीयः । न च पर्यायार्थिको नाम कोऽपि भजनाय तु विशेषः ॥9॥
शब्दार्थ-सम्हा-इसलिए; णियमसुद्धजाईओ-मियम (से) शुद्ध जातीय दबट्टियो-द्रव्याधिक; गयो-नय; णस्थि-नहीं है; ति-इसी प्रकार: कोइ-कोई पज्जवडियो-पर्यायार्थिक; णाम-नाम (नहीं है); -किन्तु; बिसेसी-विशेष (विवक्षा) भयणाय-विभाग (करने के लिए (ह)।
कोई नय शुद्ध जाति वाला नहीं भावार्थ-द्रय्यनिरपेक्ष पर्याय और पर्यायनिरपेक्ष द्रव्य नहीं है। इसलिए कोई भी नय शुद्ध जाति वाला नहीं है। द्रव्यार्थिकनय भी शुद्ध जातीय नहीं है। इसी प्रकार पर्यायार्थिकनय भी शुद्ध जातीय नहीं है। कोई भी नय अपने विरोधी नय के विषय के स्पर्श से रहित नहीं है। इसलिए इन दोनों नयों में विषय-भेद के कारण सर्वथा भेद नहीं है। वस्तुतः वस्तु जैसी है, वैसी ही है। विवक्षा वश वस्तु के कथन में भेद किया जाता है। किन्तु वस्तु में कोई भेद नहीं है। यहाँ पर द्रव्याधिकनय को शुद्ध जातीय इसलिये नहीं कहा है कि मूल अखण्ड द्रव्य पर्याय से रहित है। इसी प्रकार पर्यायार्थिक नय का विषय भी द्रव्य रहित नहीं है। फिर, वे विरोधी नय के विषय के स्पर्श से भी रहित नहीं हैं। क्योंकि सामान्य विशेष के बिना और विशेष सामान्य के बिना कभी भी नहीं पाया जाता है।
दव्वट्टियवत्तव्वं अवत्युणियमेण पज्जवणयस्स। तह पज्जवदत्थु अवत्युमेव दवट्टियणयस्स |॥10॥
द्रव्यार्थिकवक्तव्यमवस्त्व-नियमेन पर्यवनयस्य । तथा पर्ययवस्त्ववस्तव द्रव्याथिकनयस्य ||10||
शब्दार्थ-दयट्ठियवत्तव्यं--द्रव्यार्थिक (नय का) वक्तव्य; पज्जवणयस्स-पर्यायार्थिक नय के (लिए); णियपेण-नियम से; अक्त्धु-अवस्तु (है), तह-उसी प्रकार (से); दबट्ठियणयस्स-द्रव्यार्थिक नय के (लिए); पज्जववत्यु-पर्यायार्षिक (की) वस्तु; अयत्युमेव अवस्तु ही (है)।
दोनों नय परस्पर विरुद्ध मावार्थ-द्रव्यार्थिक नय का वक्तव्य (सामान्य कथन) पर्यायार्थिक मय के लिए 1. ब, स "पज्जवण्यस्स" के स्थान पर "होई परजाए"।