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________________ 142 सम्मइसुत्तं शब्दार्थ-जं-जो; काविलं दरिसण-सांख्य दर्शन (है वह); एयं यह (इस); दचट्ठियस्स-द्रव्यार्थिक (नय) का; वत्तव्य-वक्तव्य (है); सुद्धोयणतणवस्स उ-किन्तु गौतम बुद्ध का (सिद्धान्त); परिसुद्धो-बिल्कुल शुद्ध; पज्जवबियप्पो-पर्यायार्थिक नय का विकल्प है)। सांख्य तथा बौद्धमत : भावार्थ-परमार्थ से या द्रव्यार्थिक नय से एकान्त मान्यता का प्रतिपादन करने वाला सांख्य दर्शन है। यह दर्शन किसी अपेक्षा से सत् का विनाश तथा किसी अपेक्षा से असत् का उत्पाद नहीं मानता है। यह द्रव्यार्थिक नय की रीति से द्रव्य को ही विषय करता है। द्रव्य न तो कभी नया उत्पन्न होता है और न द्रव्य का कभी विनाश होता है--यह परिणामवादी सिद्धान्त है। इसकी दृष्टि में प्रत्येक तस्थ सत् स्वरूप ही है। बौद्धदर्शन केवल वर्तमान पर्याय मात्र तत्त्व मानता है। उसकी दृष्टि में कोई भी तत्त्व त्रिकालवी नहीं है। हमें जो यह प्रतीति होती है कि 'यह वही है उसका कारण सादृश्य हैं। पोयार्थिक नय का भंद रूप ऋजुसूत्रनय भी यही प्रतिपादन करता है। इसलिए पर्यायार्थिक नय की एकान्त मान्यता वाला बौद्धदर्शन कहा गया है। दोहि वि णयेहि णीय सत्थमुलूएण तह वि मिच्छत्तं । जं सविसयप्पहाणतणेण अण्णोण्णणिरवेक्खा ॥491 द्वाभ्यामपि नयाभ्यां नीतं शास्त्रमुलूकेन तथापि मिथ्यात्वम् । यः स्वविषयप्रधानत्वनान्योन्यनिरपेक्षा ||491 शब्दार्थ-दोहि वि-दोनों ही; गयेहि-नयों से; उलूएण-कणाद ने (के द्वारा); सत्य-शास्त्र (वैशेषिक दर्शन की); णीयं-रचना की; तह वि-तो भी; मिच्छत्त-मिथ्यात्व, (विपरीत, अप्रमाण है); जं-जो (ये दोनों नय; सविसयपहाणतणेण-अपने विषय (की) प्रधानता से; अण्णोण्णणिरवेक्खा-परस्पर निरपेक्ष (है)। वैशेषिक दर्शन भी भावार्थ-यद्यपि वैशेषिक दर्शन द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयों की मान्यता वाला है, किन्तु वह किसी तत्त्व को नित्य और किसी तत्त्व को अनित्य मानता है। अतः उसकी मान्यता में एक नय दूसरे नय की मान्यता का खण्डन करने वाला है। इसलिए यह सिद्धान्त भी परसमय रूप है। क्योंकि जैन-सिद्धान्त की मान्यता तो यह है कि सभी वस्तुएँ कथंचित् नित्य एवं कथंचित अनित्य हैं। परन्तु जो सर्वथा । णीयं
SR No.090409
Book TitleSammaisuttam
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size2 MB
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