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Postऑबीहायगालिया
बहुत अर्थ हैं। किन्तु मैंने संक्षेप के अर्थ में कहा है और मैंने स्वात्मबोध । की प्राप्ति के हेतु यह ग्रन्थ कहा है। भावार्थ :
ग्रन्थकार ग्रन्थ पूर्ण करते हुए लिखते हैं कि श्रावण शुक्ला द्वितीया को ! मैंने स्वात्मज्ञानार्थ यह ग्रन्थ लिखा है।
|| इति संबोह पंचासिया॥ संबोहपंचासिया
पण्डित द्यानतराय जी कृत हिन्दी काव्य ॐ कार मंझारि,पंच परम पद बसत है। तीन भुवन में सार, वंदू मन वच काय से।। १।। अक्षर ज्ञान न मोहि, छंद भेद समजों नहीं। बुधि थोरी किम होय, भाषा अक्षर बांचनी ।। २।। आतम कठिन उपाय, पायो नर भव क्यूं तजै। राई उदधि समाहि. फिर ढूंढ़ नहीं पाइये ।। ३।। ईश्वर भाष्यो येह, नरभव मति खोवे वृथा। फिर न मिले ये देह, पछताओ बहू होयगो।। ४।। ई विधी नर भव कोय, पाय विषय सुख स्यों रमैं। सो शठ अमृत खोय, हालाहल विष संचरे ।। ५।। उत्तम कुल अवतार. पायो ढुःख करि जगत में। रे जिय सोच विचार, कछु तोसा संग लीजिये।।६।। ऊरध गति को बीज, धरम न जो जीव आचरे। मानुष योनि सहाय, कूप परैकर दीप ले ।। ७|| रिस तजि के सुन बैन, सार मनुष सब यौनि में। ज्यों मुख ऊपर नैन, भानु दिपै आकाश में ।। ८।।