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________________ संबोह पंचासिया मन्दता हो जाने से दाता का हित होता है और पात्र भी अपनी आवश्यक व्यवस्था को प्राप्त करने से निर्विकल्प होकर धर्म-शुक्लध्यान करते हैं। इससे पात्र का भी हित होता है। इसीलिए आचार्यों ने इसे श्रावकों का सर्वोत्तम कर्तव्य कहा है । इसलिए वैभवसम्पन्न श्रावकों को दान अवश्य ही देना चाहिये। द्रव्य का लाभ क्यों नहीं होता ? अत्थस्य करणादो कीरइ अहियं पि अइमहापावं । अत्थो ण होइ तहविहु पुव्वं किय कम्मदोसेण ॥ ४२ ॥ अन्वयार्थ : (अत्थस्य ) धन के (करणादो) कारण से (अमहापावं) अति महाघाप (अहियं) अधिक (कीरह) करता है (पि) फिर भी (पुच्छं) पूर्व (किय कम्म दोसेण) में किये गये कर्म के दोष से (तह वि हु) उसे (अस्थी) द्रव्य (ण) नहीं ( प्राप्त ) (हो) होला । संस्कृत टीका -- हे शिष्य ! अत्र संसारेऽयं जीवः लक्ष्मीहेतोर्धनार्थं महत्प्रचुरं पापं करोति । अतीव तीव्रपापं करोति । केन ? व्यापारेण कृत्वायोग्यकर्मणा कृत्वा । कस्मात् ? प्रबलमोहवशात् । यद्यपि धनार्थमतीय तीव्रपापं करोति, तदप्ययं जीवः धनं न प्राप्नोति । यत् पूर्वभवोपार्जितं शुभाशुभं कर्म, तस्यैव कर्मणः शुभाशुभं फलमनेन जीवेन प्राप्यते । पूर्वभवोपार्जितेन पुण्यकर्मणा विनास्य जीवस्य मनुष्यो वा व्यन्तरो कश्चिद्देवो वा तिर्यग्वा शुभाशुभं सुख-दुःख न ददाति । अन्यः कोऽपि सुखं दुःखं ल वा ददाति तस्य जीवस्य स्थोपार्जितं शुभाशुभं क्व तत्र गतम्, इति मत्वाज्ञानिनो जीवा मिध्यात्ववशात् कुदेवरक्ताः पाखण्डिनो मनुष्या एवेवं वदन्ति । किम् ? तन्त्रमन्त्रादि भिरौषधियशीकरणकौटिल्यादिभिः चण्डीशीतलादिभिः पूजाभिरभीष्टसिद्धिः भवति, एवमसत्यं वदन्ति । टीकार्थ : हे शिष्य ! इस संसार में यह जीव लक्ष्मी के प्राप्ति हेतु बड़ा पाप करता है । कैसे ? व्यापार करके, अयोग्य कर्म करके । क्यों ? प्रबल भोह के वशात् । 57
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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