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________________ संबोचासिया | वह धर्म कैसे उत्पन्न होता है ? (१) सिद्धान्त का अध्ययन करने से धर्म होता है। (२) साधर्मियों का विनय करने से धर्म होता है। (3) कषायों का उपशम करने से धर्म होता है। उपर्युक्त आठ प्रकार से धर्म की उत्पत्ति होती है। शंका :- यह धर्म किनके योग्य है ? समाधान :- यह धर्म मुनियों के योग्य है। धर्म के ऐसे लक्षण जानने चाहिये। शंका :- यह लक्षण किसने कह है ? समाधान :- यह लक्षण जिनेन्द्र के द्वारा कहे गये हैं। भावार्थ : धर्म शब्द को आगम में अनेक प्रकार से परिभाषित किया गया है । वे सारे लक्षण परस्पर में पूरक हैं। एक का कथन करने पर शेष सम्पूर्ण लक्षणों का कथन स्वयमेव ही हो जाता है। उपर्युक्त टीका में आठ प्रकार का धर्म बताया है - (१) अहिंसा धर्म है। (२) विनय धर्म है। (३) परोपकार धर्म है। (४) स्वाध्याय धर्म है। । (५) उपशम धर्म है। (६) जो उत्तम सुखदायक है वह धर्म है। (७) रत्नत्रय धर्म है। (८) दशलक्षण धर्म है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा नामक ग्रन्थ में धर्म के स्वरूप को चार विभागों में प्रकट किया गया है । यथा - धम्मो वत्थुसहावो खमादि भावो य दसविहो धम्मो। __ रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो॥ | अर्धात् :- १- वस्तुस्वभाव को धर्म कहते हैं। २- दशप्रकार के क्षमादि भावों को धर्म कहते हैं।
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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