SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Nachterसंबौह प्रचासिया कारण हैं. किसी के दुःख स्त्रीहीनता के हैं, किसी के दुःख पुत्रहीनता के हैं, किसी के घर में स्त्री और पुत्र दोनों भी नहीं है। जैनधर्म का आचरण जिसने किया है, वही जीव सुखी हो सकता है ।। अतएव हे भव्यजीवो ! धर्म की शरण में अपना जीवन व्यतीत करो। बुढ़ापे का दुःख थेरत्तणेण दुक्खं सहियं दुसहं वि किंवि वीसरियं । जेण वि विसय विमोहिय किं वि रज्जंते हि अप्पाणं ॥२६॥ अन्वयार्थ :(थेरत्तणेण) बुढ़ापे में (दुसहं वि) जो दुस्सह (दुक्खं) दुःख (सहियं) सहे | उसे (किं वि) क्यो (वीसारयं) भुला दिया (जेवि) जिससे (विसय) विषय (विमोहिय) मोहित होता हुआ (हि) जिश्चयतः (आप्पाणं ) आत्मा को। (किं वि) क्यों (रज्जंते) रंजायमान करता है ? संस्कृत टीका : हे शिष्य ! पुनः संसासय कीदृशं दुःखम् ? धेरत्तणेण वृद्धत्वेनायं जीवः करेण यष्टिका गृहीत्वातिदुःखेन गमनं करोति । ईदृशं दुःखम् । रे मूठ जीव ! त्वयानन्तवारान भुक्तम् । तदुःखं कथं विस्मूतः ? रे मूठ ! त्वं विषयमोहवशात् कथं परोपरि रति करोषि ? वात्मचिन्तनं न करोषि ? उक्तञ्च - अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं जातं दशनविहीनं तुण्डम् । वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ।। पुनश्चोक्तम् - नानायोनि वजित्वा बहुविधमसुखं वेदनां वेदयित्वा संसारे चातुरङ्गे जनिमरणयुतां दीर्घकालं भ्रमित्वा। अन्योन्य भक्षयन्ति स्थलजलखचराः केन योनीषु जाता लब्धं ते मानुषत्वं न चरति सुतपो वाग्छतेऽसौ वराकः ।। कति न कति न वारान् भूपतिर्भूरिभूतिः ।
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy