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________________ संग्रह पंचासिया मृत्यु अवश्य होगी जह पविसहि पायालं वज्जहि देसम्मि अइसुदूरम्मि । वसहि महोवहि राज्ये तह कालु ण वंचणं जाड़ !! 19 ॥ अन्वयार्थः (जठ) यदि (पायालं) पाताल में ( पविसहि) प्रवेश करे (अडसुम्मि) अत्यन्त सुदूरवर्ती (देसम्मि) देश में ( वज्जहि) जाए (महोवहि मज्झे ) महासागर में (बसहि) वास करे (तह) तो भी (कालु) काल को (वंचणं) धोखा (ण) नहीं (जाब) दिया जा सकता। संस्कृत टीका : रे जीव ! अत्र संसारमध्ये त्वं कालभयवशात् कदाचित् पाताले गच्छसि तर्हि कालान्मुक्तो न भवसि अथवातिदूरदेशं व्रजसि, महासागरमध्ये वा वससि तथापि कालस्त्वां न मुचेति । तथा चोक्तम् - आरोहसि गिरिशिखरं समुद्रमुल्लंघ्य यासि पातालम् । तत्रापि विशति कालो न सहायको वर्तते तेऽन्यः ॥ टीकार्थ: रे जीव ! तू इस संसार में काल के भय के कारण कदाचित् पाताल में भी जायेगा, तब भी काल से नहीं छूट सकता अथवा अतिदूरवर्ती प्रदेश में भी रहेगा, सागर में भी रहेगा तो भी काल तुझे नहीं छोड़ेगा । कहा भी हैं - आरोहसि गिरिशिखरं - - अर्थात् :- भले ही तुम गिरिशिखर पर चढ़ जाओ, समुद्र को उल्लंघकर पाताल में चले जाओ, वहाँ भी काल का प्रवेश हो जाता है। मृत्यु के समय कोई अन्य सहायक नहीं होता । भावार्थ: - मृत्यु से बचने के लिए किए गये सारे उपाय व्यर्थ हो जाते हैं। संसार का अन्त करके ही मृत्यु से बच सकते हैं। 23
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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