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समयसार
कथमात्मा रागादीनामकारकः ? इति चेत्--
अपडिकलमा दुविहं अपच्चक्खाणं तहेव विष्णेयं । एएणुवसेण य अकारो वणिणो चेया ॥२८३॥ अपडिक्कमणं दुविहं दब्वे भावे तहा अपच्चरखाण । एएणुवसेण य अकारो वणिो चेया ॥२८४॥ जावं अपडिक्कमणं अपञ्चक्खाणां च दव्वभावाणं । कुब्बइ श्रादा तावं कत्ता सो होइ णायव्यो ॥२८५॥ (त्रिकलम् )
प्रप्रतिक्रमण विविध है, अप्रत्याख्यान भी द्विविध जानो। इससे हि सिद्ध यह है, वेतयिता तो प्रकारक है ॥२८३॥ द्रव्य भाव वो प्रप्रति-फमरण तया अप्रत्याख्यान भि दो। इससे हि सिम यह है, चेतयिता तो प्रकारक है ॥२४॥ अव्य तथा भावोंका, प्रतिक्रमण न प्रत्याख्यान जब तक ।
करता है यह आत्मा, तब तक कर्ता इसे जानो ॥२८॥ नामसंश- अपडिक्कमण, दुविह, अपच्चक्खाण, तह, एव, विष्णेय, एत, उवएस, य, अकारअ, वष्णिा , चेया, अपडिक्कमण, दुविह, दव्य, भाष, तहा, अपञ्चक्खाण, एस, उवएस, य, अकारअ, बग्णिय, है । ३- जीवके रागादि परिणमन उदयामत द्रध्यप्रत्ययके सान्निध्यमें होते हैं ।
दृष्टि-१- निमित्तष्टि (५३) । २- निमित्तत्वनिमित्तदृष्टि (२०१)। ३-उपाधिसापेक्ष प्रशुद्धद्रव्याथिकनय (२४)।
प्रयोग-रागादिविकारोंको अस्वभावभाव जानकर उससे आत्मीयता न जोड़कर पाश्वत ज्ञानस्वभाबमें प्रात्मत्वका अनुभव करना !! २८२ ।।
प्रश्न-यदि भज्ञानीके रागादिक फिर कर्मबन्धके कारण हैं, तो प्रात्मा रागादिकोंका प्रकारक कैसे है ? उत्तर--[अप्रतिक्रमणं] अप्रतिक्रमण [द्विविध] दो प्रकारका [तथैव] उसी तरह [प्रप्रस्याल्यानं] अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका [विशेय] जानना [एतेन उपदेशेन ब] इस उपदेशसे [चेतयिता] प्रात्मा [अकारकः भणितः] प्रकारक कहा गया है । [अप्रतिजमरणं] मप्रतिक्रमण [द्विविध] दो प्रकार है [द्रध्ये भावे] एक तो द्रव्यमें, दूसरा भावमें । [सवा अप्रत्याल्यामं] उसी तरह अप्रत्याख्यान भी दो तरहुका है एक द्रव्यमें दूसरा भावमें