SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ समयसार कथमात्मा रागादीनामकारकः ? इति चेत्-- अपडिकलमा दुविहं अपच्चक्खाणं तहेव विष्णेयं । एएणुवसेण य अकारो वणिणो चेया ॥२८३॥ अपडिक्कमणं दुविहं दब्वे भावे तहा अपच्चरखाण । एएणुवसेण य अकारो वणिो चेया ॥२८४॥ जावं अपडिक्कमणं अपञ्चक्खाणां च दव्वभावाणं । कुब्बइ श्रादा तावं कत्ता सो होइ णायव्यो ॥२८५॥ (त्रिकलम् ) प्रप्रतिक्रमण विविध है, अप्रत्याख्यान भी द्विविध जानो। इससे हि सिद्ध यह है, वेतयिता तो प्रकारक है ॥२८३॥ द्रव्य भाव वो प्रप्रति-फमरण तया अप्रत्याख्यान भि दो। इससे हि सिम यह है, चेतयिता तो प्रकारक है ॥२४॥ अव्य तथा भावोंका, प्रतिक्रमण न प्रत्याख्यान जब तक । करता है यह आत्मा, तब तक कर्ता इसे जानो ॥२८॥ नामसंश- अपडिक्कमण, दुविह, अपच्चक्खाण, तह, एव, विष्णेय, एत, उवएस, य, अकारअ, वष्णिा , चेया, अपडिक्कमण, दुविह, दव्य, भाष, तहा, अपञ्चक्खाण, एस, उवएस, य, अकारअ, बग्णिय, है । ३- जीवके रागादि परिणमन उदयामत द्रध्यप्रत्ययके सान्निध्यमें होते हैं । दृष्टि-१- निमित्तष्टि (५३) । २- निमित्तत्वनिमित्तदृष्टि (२०१)। ३-उपाधिसापेक्ष प्रशुद्धद्रव्याथिकनय (२४)। प्रयोग-रागादिविकारोंको अस्वभावभाव जानकर उससे आत्मीयता न जोड़कर पाश्वत ज्ञानस्वभाबमें प्रात्मत्वका अनुभव करना !! २८२ ।। प्रश्न-यदि भज्ञानीके रागादिक फिर कर्मबन्धके कारण हैं, तो प्रात्मा रागादिकोंका प्रकारक कैसे है ? उत्तर--[अप्रतिक्रमणं] अप्रतिक्रमण [द्विविध] दो प्रकारका [तथैव] उसी तरह [प्रप्रस्याल्यानं] अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका [विशेय] जानना [एतेन उपदेशेन ब] इस उपदेशसे [चेतयिता] प्रात्मा [अकारकः भणितः] प्रकारक कहा गया है । [अप्रतिजमरणं] मप्रतिक्रमण [द्विविध] दो प्रकार है [द्रध्ये भावे] एक तो द्रव्यमें, दूसरा भावमें । [सवा अप्रत्याल्यामं] उसी तरह अप्रत्याख्यान भी दो तरहुका है एक द्रव्यमें दूसरा भावमें
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy