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________________ . . . . . . .. . . समाधितंत्र ..-. .- - -- - संसार है-देहके अभावमें संसार रहता नहीं। जो लिंगके आग्रही हैंलिंगको हो मुक्तिका कारण समझते हैं-संसारको अपनाये हुए हैं, और जो संसारके आग्रही होते हैं-उसीकी हठ पकड़े रहते हैं. वे संसारसे नहीं छूट सकते ।।८७|| ___ येऽपि 'वर्णानां ब्राह्मणो गुरुरतः स एव परमपदयोग्य' इति वदन्ति तेऽपि न मुक्तियोम्या इत्याह-- जातिहाश्रिता दृष्टा वेह एवात्मनो भवः । न मुच्यन्ते भवारना थे भाविता: 13 टीका जातिक्षिणत्वाविदेहाश्रितेत्यादि सुगमं ।। ८८ ।। जो ऐसा कहते हैं कि 'वर्णोका ब्राह्मण गुरु है, इसलिए वही परमपदके योग्य है वे भी मुक्तिके योग्य नहीं हैं, ऐसा बतलाते हैं--- अन्वयार्ष-(जातिः ) ब्राह्मण आदि जाति ( देहाश्रिता दृष्टा) शरीरके आश्रित देखी गई है ( देह एव ) और शरीर हो ( आत्मनः भवः) आत्माका संसार है (तस्मात् ) इसलिये (ये) जो जीव ( जातिकृताग्रहा.) मुक्तिको प्राप्तिके लिये जातिका हट पकड़े हुए हैं ( तेऽपि ) वे भी ( भवात् ) संसारसे ( न मुच्यन्ते) नहीं छुट सकते हैं। भावार्य-लिंगकी तरह जाति भी देहाश्रित है और इसलिए जातिका दुराग्रह रखने वाले भी मुक्तिको प्राप्त नहीं हो सकते । उनका जाति-विषयक आग्रह भी संसारका ही आग्रह है और इसलिए वे संसारसे केसे छूट सकते हैं ? नहीं छूट सकते ||८cli ___ सहि ब्राह्मणत्वादिजातिविशिष्टो निर्वाणाविधीक्षया दीक्षितो मुक्ति प्राप्नोतीति वदन्त प्रत्याह जातिलिगविकल्पेन येषां च समयाग्रहः । तेऽपि न प्राप्नुवन्स्येव परमं परमात्मनः ।।८९॥ टीका-जासिलिगस्पोविकल्पों भेवस्तेन येषां पावादीनां समयाग्रहः भागमानुबंधः उत्तमजातिविशिष्टं हि लिंग मुक्तिहेतुरित्यागमे प्रतिपादितमतस्तावन्माण मुक्तिरित्यरूपी येषामागमाभिनिवेशः हेऽपि में प्राणवन्रमेव परमं परमात्माः ॥८९॥ तब तो ब्राह्मण आदि जातिविशिष्ट मानव ही साधुवेष धारणकर मुक्ति प्राप्त कर सकता है, ऐसा कहने वालोंके प्रति कहते हैं अम्बया-(येषा) जिन जीवोंका ( जातिलिंगविकल्पेन ) जाति --. ..
SR No.090404
Book TitleSamadhitantram
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages105
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size2 MB
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