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________________ - .- -. . . . समातिम रेण । वेष्टते प्रवर्तते । तथाष्टोऽस्मि तथा तदुधमपरित्यागप्रकारण चेष्टा यस्यासी तयाचेष्टोऽस्मि भवाम्यहम् । क्व ? देहावी । किविशिष्टः ? विनिदातरम विम: विशेषण निवृत्त आत्मबिभ्रमो यस्म । क्व महाबौ ।। २२ ॥ अब आत्मज्ञान हो जानेसे मेरी किस प्रकारकी चेष्टा हो गई है उसे बतलाते हैं.... चम्बयार्थ-(असौ ) जिसको वृक्षके टूठमें पुरुषका भ्रम हो गया था वह मनुष्य (स्याणी) ट्रॅठमें ( पुरुषाग्रहे निवृत्त) यह पुरुष है ऐसे मिथ्याभिनिवेशके नष्ट हो जाने पर ( यथा) जिस प्रकार उससे अपने उपकारादिकी कल्पना त्यागने की ( चेष्टते ) चेष्टा करता है उसी प्रकार (देहादी) शरीरादिकमें (विनिवृत्तात्मविभ्रमः) आएमपनेके भ्रमसे रहिस हुआ में भी ( तथा चेष्टः अस्मि) देहादिकमें अपने उपकारादिको बुद्धिको छोड़नेमें प्रवृत्त हुआ हूँ। भावार्य-जब वृक्षके दूँठको दृक्षका दूँठको जान लिया जाता है तब उससे होने वाला पुरुष-विषयक भ्रम भी दूर हो जाता है और फिर उस कल्पित पुरुषसे अपने उपकार, अपकारकी कोई कल्पना भी अवशिष्ट नहीं रहती। इसी दृष्टिसे सम्यग्दृष्टि अंतरात्मा विचार करता है कि पूर्व मिथ्यात्व-दशामें जब मैं मोहोदयसे शरीरको ही आत्मा समझता या तब में इस्त्रियोंका दास था, उनकी साता परिणति में सुख और असाता परिमप्तिमें ही दुःख मानता था, किन्तु अब विवेक-ज्योति का विकास हुनामारमा वेतन्यस्वरूप है, बाकी सब पदार्थ अधेतन हैं-जड़ हैं; आल्मासे भिन्न है, इस प्रकारके जड़ और चेतन्यके भेव विधानसे मुझे तत्वार्यअवानरूप सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हुई और शरीरादिकके विषयमें होने वाला आस्म-विषयक मेरा भ्रम दूर हो गया है। इसीसे शरीरके संस्कारादि विषयमें मेरी अब उपेक्षा हो गई है में समझने लगा है कि शरीरादिकके बनने अपवा बिगड़नेसे मेरे आत्माका कुछ भी बनता जपचा बिगड़ता नहीं है और इसीसे शरीरादिकी अनावश्यक चिताको कर अब मैं सविशेषरूपसे आत्म-चिन्तनमें प्रवृत्त हुआ हूँ ॥ २२ ॥ अथवानीमात्मनि स्यादिलिसकत्वादिसंख्याविभ्रमनिस्पयं तद्विविक्तासाधारणस्वरूप दर्शयन्नाह-- येनात्मनाउनुभूयेऽहमारमनैवात्मनाश्मनि । सोहन तम्न सामासो नैको नमोबाबा ॥२६॥
SR No.090404
Book TitleSamadhitantram
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages105
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size2 MB
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