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श्रीमद् आचार्य पूज्यपाद देवनन्दि : एक परिचय
• डॉ० कमलेश कुमार जैन 'चोधरी* निनन्थ परम्परामें ही नहीं, अपितु भारतीय परम्परामें जो लब्धप्रतिष्ठ शास्त्रकार हुए हैं, उनमें आचार्य पूज्यपाद देवनंदिका नाम प्रमुख रूपसे लिया जाता है | वस्तुतः 'पूज्यपाद' यह एक आदर और बहुमानको दर्शाने वाला शब्द है। क्योंकि अनेक शास्त्रकारों ने किसी अपने पूर्वाचार्यका नाम स्मरण करते समय या उनके वाफ्योंको उद्धत करते समय 'पूज्यपाद' शब्दका प्रयोग किया है। अतएव 'पूज्यपाद' यह एक उपाधि है, जो कि विद्वरजगत्में देवनंदि पूज्यपाद स्वामीके लिए रूढ़ हो गया है। इनका मूल नाम देवनंदि ही है । __ आचार्य देवनंदिके साहित्य सृजनको देखकर निःसन्देह यह कहा जा सकता है कि वे एक प्रतिभाशाली विद्वान हैं, एक महान् कवि हैं, प्रसिद्ध वैयाकरण है, प्रखर दार्शनिक हैं और गहन अध्यात्मवेता है । इनके द्वारा रचिरा साहित्यका निधन्य परम्परर दिनाबर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें समान रूपसे प्रभाव दिखाई देता है। उनके उत्तरवर्ती लगभग सभी साहित्यकारों एवं इतिहास मर्मज्ञों ने इनकी महत्ता, विद्वत्ता और बहुमताको स्वीकार किया है। और अपनी श्रद्धा के पुष्प उनके चरणों में समर्पित किये हैं।
जिस प्रकार इन्होंने अपनी अनुपम रचनाओं द्वारा मोक्षमार्गका प्रकाशन किया है, उसी प्रकार शब्दशास्त्र ( व्याकरण ) पर भी अपनी कृतियां साहित्य जगत्को दी हैं। यह भी माना जाता है कि उन्होंने शरीरशास्त्र जैसे विषय पर भी अपनी लेखनी चलायी थी, दूसरे शब्दोंमें, वैद्यकशास्त्रका प्रणयन किया था। जिससे उनके लोकोपयोगी साहित्य निर्माण एवं लोक कल्याणकी भावनाका स्पष्ट संकेत मिलता है। कविके रूपमें उन्होंने अध्यात्म, आधार एवं नीतिका प्रतिपादन किया है।
आजके संघर्षमय एवं तनावपूर्ण जीवनमें उनके द्वारा लिने गये 'समाधितंत्रम्' ( समाधितन्त्र) और इष्टोपदेशम् (इष्टोपदेश ) जैसे अध्यात्म-प्रधान अनुपम शास्त्र मानव मात्रको पथ प्रदर्शनका कार्य करते हैं विशेषतः समाधितंत्र में देवनंदि पूज्यपादके योगीस्वरूपके दर्शन होते हैं। उनका यह यौगिक स्वरूप तीर्थंकर महावीरकी परम्परासे सीधा जुड़ता है। + शोष-अध्येता--पी० एल• इंस्टीट्धट बाफ इकोलाजी, दिल्ली