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मज्जविनबाभलwww आरी श्री अनिलपेण विरचित
मंगलाचरण और प्रतिज्ञा नत्वा वीरजिनं जगत्त्रयगुरुम्मुक्तिश्रियोवल्लभं, पुष्पेषु क्षयनीतिबाणनियहं ससारदुःखापहम् । वक्ष्ये भव्यजनप्रबोधजननं ग्रन्थं समासादहं ,
नाम्ना सज्जनचित्तवल्लभमिमं श्रृण्वन्तु सन्तोजनाः ॥१॥ | अन्वयार्थ :
(जगत्त्रय गुरुम्) तीनलो क के गुरु (मुक्तिश्रियोवल्लभम्) मुक्तिलक्ष्मी के प्रिय (पुष्पेषु क्षयनीतिबाणनिवह) काम के बाण को नष्ट करने वाले ब्रह्मचर्य रूपी ब्राण के धारक (संसार दुःखापह) संसार के दःखों का हरण करने वाले (भव्यजन प्रबोधजनन) भव्यजीवों को ज्ञान प्रदान करने वाले (तीरं जिनम् ) वीर जिनेन्द्र को (जत्वा) नमस्कार करके (अहम) में (सचनचित्तवल्लभ नाम्गा) सज्जनचित्तवल्लभ नाम के (इम ग्रन्थम्) इस ग्रंथ को (समासात) संक्षेप में (वक्ष्ये) कहूँगा (सन्तोजनाः) हे सजनो । (अण्वन्तु) से तुम श्रवण करो। अर्थ:
जो तीन जाल के गुरु हैं. मोहालक्ष्मी के बल्ल हैं. कामबाण को नष्ट करने में समर्थ ऐसे ब्रह्मचर्य की बाणा को साग करने वाले हैं. संसार के द:खों को हरने वाले हैं भन्यजीवों को जान देने वाले हैं ऐसे भगवान महावीर को नमस्कार करने में सज्जनचित्तवल्लभ जामक गश को संक्षिप्त रूप में कहूँगा ।
हे सन्तजनों ! तुम इसे सुनो। | भावार्थ :
गंथकता आचार्य श्री मल्लि जी ने इस श्लों में मला | | तथा गंथ की रचना करते
है।