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w wwसज्जनभित्तबल्लभ पर
५. संयम की विराधना :-- स्त्रियों में किया गया विश्वास धीरेधीर पीति को उत्पन्न करता है। प्रीति वासना की जननी है । वासना के कारण इन्द्रियजिवाह रूप संयम का अभाव होकर असंयम वर्द्धित होता
ग्रंथकर्ता ने इस श्लोक में तीन मुलदोषों का वर्णन किया है।
1. लोक में अपकीर्ति :- यह साधु स्त्रियों में अनुरागी है, ऐसी अपकीर्ति स्त्रियों में विश्वास करने वाले मुनि के प्रति निश्चित ही उत्पल्ल होती है।
१. संशय :- मुनि का चारित्र संशयास्पद हो जाता है।
1. पौरुषनाश :- अस्ति पुरुषश्चिदात्मा (पुरुषार्थसिद्धयुपाय-१) चैतन्यमयी आत्मा ही पुरुष है । पुरुष का कार्य, गुण या धर्म ही पौरुष कहलाता है। स्त्रियों में विश्वास करने से आत्मधर्म अथवा आत्मगुण
जे लगते हैं अत्यतिकर कार्यो का विनाश होने लगता है।
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शरीर संस्कार का निषेध किं संस्कारशतेन विट्जगति भोः काश्मीरजंजायते , किन्देहः शुचितां व्रजेदनुदिनं प्रक्षालनादम्भसा। संस्कारो नखदन्तवक्त्रवपुषां साधो त्वया युज्यते, नाकामो किल मण्डनप्रिय इति त्वं सार्थकं मा कृथाः ॥२४॥ अन्वयार्थ:
(किंग) तया (जगति) संसार में (संस्कार शतेल) सैकड़ों जार किये गये संस्कार से (विट) टेिऽत(काश्मीरजं जायते ?) चन्दन बन जाती है ? (किम् ) वसा (देह) : शीर (अनुदिन) प्रतिद्धिता (अभिसा प्रक्षालनात्)। पालित करने में (अतितांतजेत् ?) पति हो जाता है ? (जअदज्रतिकावपुषाम) जस्तूल. हात. मुख और शरीर का (संस्कारः त्वया युज्यते ) तू संसाः परा है (त्वं भण्ड नप्रियः), तू मला जांप्रेन है (किल अकामी न) निश्वास से अकमी नहीं है (इति सार्थकम् ) तू ऐसा सार्थक नाम (मा कृथाः) मत रख ।