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अर्थ:
तू सतत स्त्रियों के घर में विश्वास मत कर, तेरे विश्वास कर लेने से लोक चर्चा होगी. संशय उत्पन्न होगा एवं पौरुष नष्ट होगा। तुम स्वाध्याय में मग्न रहकर गुरु के वचनों को सिर पर धारण करो । यदि तुम भ्रष्ट होते हो तो क्षय को प्राप्त हो जाओगे । भावार्थ:
सज्जनचित्तवलभ
आचारशास्त्रों में सदाधार की मर्यादा का परिपालन करने के लिए अनेक नियम बनाये गये हैं। उन नियमों का धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। स्त्रियों पर विश्वास करने से पाँच दोष उत्पन्न होते हैं - ऐसा मूलाधार में आचार्य श्री वह केर जी का मत है । वे पाँच दोष कौनसे हैं ?
शंका
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समाधान:- आचार्य श्री वसुनन्दि जी ने लिखा है किआज्ञाकी पानवस्थामिथ्यात्वाराधनात्मनाशासंयम विराधनानि ।
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(मूलाचार टीका - ५ / १२७ ) अर्थात् :- आज्ञाकोप, अनवस्था, मिथ्यात्व - आराधना, आत्मनाश और 'संयम की विराधना ये पाँच दोष होते हैं ।
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1. आज्ञाकोप जिनेन्द्र की आज्ञा है कि स्त्रियों पर विश्वास न करें। विश्वास करने से उनकी आज्ञा का उल्लंघन होता है ।
1. अनवस्था :- गृहस्थ हो या मुनि, उनके पद की एक गरिमा होती है। एक को विलोक कर दूसरे भी उस मर्यादा का पालन करते हैं । एक के द्वारा मर्यादा का भंग करने पर अन्य लोग भी मर्यादा का भंग करेंगे। इसी दोष को अनवरथा दोष कहा जाता है।
३. मिथ्यात्व आराधना सर्वज्ञ की आज्ञा का भंग होने से मिथ्यात्व को पुष्ट होने का अवसर प्राप्त होगा ।
४. आत्मनाश :- मिध्यात्व का उदय होने पर सम्यग्दर्शन का अभाव हो जाता है। सम्यग्दर्शन के अभाव में द्वाज और चारित्र का भी विनाश हो जाता है । रत्नत्रय के विनाश को ही आत्मा का नाश कहा जाता है ।
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