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हालकसजविलवामपक
उत्तम क्षमा. मार्दव. आर्जव, शौच, सत्य, संटाम लप. त्याग. आकिंचन और ब्रह्मचर्य ये दस धर्म है । मुजिनाप इन धर्मों का पालन आगमोक्त रीति से करते हैं । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र को भी धर्म कहा जाता है । मुनिराज इन तीनों को यथाविधि तथा पूर्ण शक्ति से धारण करते हैं।
१. साधुता : ... साधुता यानि सज्जनता, पर दुःखकातर मुनिराज अपने लिए जितने कठोर होते हैं, वे उतने ही पर के लिए कोमल होते हैं। अपने कारण किसी को कष्ट नहीं हो, इस बात का वे पूर्ण रूप से ध्यान रखते हैं। मनसा, वाचा, कर्मणा वे सदाचार का परिपालन करते हैं। दष्ट पुरुषों को भी वे सदैव सन्तोष प्रदान करते हैं । साधु के ये लक्षण कर्मक्षय करने में समर्थ निमित्तकारण होते हैं।।
साधुत्व के लक्षणों का कथन करते हए आचार्य श्री शिवकोटि जी महाराज लिखते हैं - दिगम्बरी निरारम्भो नित्यानन्दपदाधिनः । धदिक्काराहामा शिशुन्यते बुधः ॥
(रत्नमाला - ८) अर्थात् :- जो दिगम्बर हैं, निरारम्भ हैं , नित्यानन्द पद के इच्छुक हैं, जो धर्म को बढ़ाने वाले हैं, जो कर्म को जलाने वाले हैं वे साधु हैं - ऐसा बुधजनों ने कहा है।
इन गुणों से युक्त विशिष्ट साधुजनों के श्रीचरणों में मेरा त्रिवार और त्रिकाल सविनय शतशत् वन्दम ।
धनादि की कामना का निषेध किन्दीक्षा ग्रहणेन ते यदि धनाकांक्षा भवेच्चेतसि, किङ्गार्हस्थमनेन वेषधरणेनासुन्दरम्मन्यसे। द्रव्योपार्जन चित्तमेव कथयत्यभ्यन्तरस्थाङ्गनां, नोचेदर्थपरिग्रह ग्रहमतिर्भिक्षो न सम्पद्यते॥५॥
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