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मज्जनचित्तवल्लभ
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भावलिंग ही मुख्य लिंग है और मोक्ष का कारण है। अतः उसे प्राप्त करके कर्मक्षपण करने का प्रयाण किया जाना उचित है।
साधु का लक्षण
देहे निर्ममता गुरौ विनयता नित्यं श्रुताभ्यासता, चारित्रोज्वलता महोपशमता संसारनिर्वेगता । अन्तर्बाह्य परिग्रहत्यजनता धर्म्मज्ञता साधुता, साधो साधुजनस्य लक्षणमिदं संसारविक्षेपणम् ॥४॥ अन्वयार्थ :
में
( देहे निर्ममता) शरीर से निर्ममत्वता (गुरौ विनयता) गुरु विनय (नित्यं श्रुताभ्यासता) नित्य श्रुत का अभ्यास (चारित्रोज्वलता) चारित्र में निर्मलता (महोपशमता ) महान उपशम से सहितता (संसार निर्वेगता) संसार से विरक्तिभाव (अन्तर्बाह्य परिग्रहत्यजनता) अन्तरंग और बहिरंग परिवाह का त्याग ( धर्मज्ञता ) धर्म के स्वरूप का ज्ञान (साधुता ) साधुता (साधो ) हे साधी ! (इदं) ये (साधुजनस्य ) साधुओं के (संसारविक्षेपणम्) संसार का विनाश करने वाले (लक्षणम्) लक्षण हैं । अर्थ :
हे साधु । देह से निर्ममता, गुरु का विजय, नित्य श्रुताभ्यास, चारित्र की उज्वलता, महा-उपशमता, संसार से निवेंगता, अन्तर्बाह्य परिग्रह रहितता, धर्मज्ञता ये साधुता के लक्षण है ऐसा साधुजनों ने कहा है । यह साधुता संसार का नाश करती है।
भावार्थ :
अनन्तरपूर्व श्लोक में अन्तरंग चारित्र की प्रधानता को दर्शाया गया है । वहाँ यह स्पष्ट किया गया था कि केवल नग्नवेष मोक्षमार्ग नहीं है । साधुओं में पाये जाने वाले चारित्रिक गुण ही पूजनीय होते हैं ।
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