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[सयंभूएवकए रिटुणेमियरिए
अंतर ताम परिष्टुिर पारख । एह पारायण पुत्तु नहारउ ॥ जो बालत्तणे असर रियउ ।
एन भणेवि महियलि मोपरियड ॥ घता--तपक्षणे महमहङ्गेण परिहरिवि घोर समरंगणु !
पिम्भरणेह-बसेण सई भुहि दिग्ण आलिगण ॥१५॥ इस रिटुमिचरिए धवलइयासिय सबभूवकए पञ्जुग्गमिलमणणो
___णाम बारहमो सग्गो ॥१२॥
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तुम्हारा पुत्र है जिसका अपहरण बचपन में असुर ने किया था।" यह कहकर वह धरतीतल पर आ गये।
पत्ता–मधुसूदन ने उसी क्षण घोर युद्ध-प्रांगण छोड़कर, परिपूर्ण स्नेह के वश होकर अपनी मुजाओं से उसे आलिंगन दिया ॥१५॥
इस प्रकार धवलहया के आश्रित स्वयंभूदेव कृप्त अरिष्टनेमिचरित में
प्रद्युम्न-मिलन नामक बारहवां सर्ग समाप्त हुआ ॥१२॥