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श्रीमद्भागवत : कृष्ण-कथा
श्रीमद्भागवत में परीक्षित के पूछने पर आचार्य शुकदेव बताते हैं—प्राचीन काल में यदुवंशी राजा शूरसेन मथुरापुरी में रहकर माथुर मण्डल और शूरसेन मोडल का शासन करने लगे। उनके पुत्र बसुदेव देवकी से विवाह कर उसके साथ घर जाने को तैयार हुए। देवकी कंस की चचेरी बहन थी । उसे प्रसन्न करने के लिए वह घोड़ों की रास पकड़ लेता है और स्वर्ग रथ होकता है। इतने में मह आकाशवाणी होती है कि देवकी के आठवें गर्म से जो सन्तान होगी वह कंस की मृत्यु का कारण होगी । कंस भोजकवंशी है। वह देवकी को ही मार डालना चाहता है। न होगा बांस और न बजेगी बांसुरी। वसुदेव के यह वचन देने पर कि प्रत्येक सन्तान उसे सौंप दी जाएगी, कंस अपना विचार बदल देता है । पहला पुत्र होता है और वसुदेव उसे लेकर कंस के पास पहुंचते हैं। कंस उनकी सत्यनिष्ठा देख कर तथा ग्रह सोचकर कि उमजी मौत आठवी सन्तान के हाथ में है, नवजात शिशु को वापस कर देता है। इस बीच देवपि नारद कंस को बताते हैं कि पटुवंशी देवता हैं और कंस की मुत्यु की तैयारी निश्चित रूप से हो रही है। कंस हथकड़ियों और बेड़ियों से जकड़कर वसुदेव-देवकी को बन्दीघर में डाल देता है । छह पुत्रों की हत्या के बाद, विष्णु भगवान् योगमाया को वृन्दावन भेजते हैं और कहते हैं कि देवकी के गर्म में स्थित 'शेष' के अंश को रेवती के गर्भ में रख पाओ। वह स्वयं देवकी के गर्भ में आते हैं और योगमाया मशोदा के गर्भ में स्थित होती है। कृष्ण का जन्म होते ही बन्दीगृह के लोहे के दरवाजे स्वतः खुल जाते हैं। शेषनाग अपने फनों से शिशु को वर्षा से बचाते हैं। वसुदेव कृष्ण के बदले में नन्द की कन्या लेकर व्रज से वापस लौटते हैं। कंस को संतान होने की सूचना दी जाती है। कंस आकर कन्या को पछाड़ता है । वह योगमाया बनकर आकाश में चली जाती है, यह कहते हुए कि, "हे केस, तेरा मारने वाला कहीं पैदा हो गया है।" कंस वसुदेव-देवकी को बन्धनमुक्त कर उनसे क्षमा-याचना करता है। कस के दैत्य मंत्री नगर-गाँवों के बच्चों के वध की योजना बनाते हैं।
शिशु धीरे-धीरे बढ़ता है । नन्द वार्षिक कर चुकाने के बहाने मथुरा जाते हैं और वसुदेव से मिलकर वापस आते हैं। पूतना राक्षसी शिशु का वध करने जाती है। वह बालक को दूध पिलाती है । लेकिन बालक दूध के साथ उसके प्राण भी पीने लगता है ! वह प्राण छोड़ देती है । नन्द को मथुरा से लौटने पर इस घटना का पता चलता है। करवट बदलने के उत्सव में शिशु छकड़े के नीचे सो रहा है, यशोदा व्यस्तता के कारण दूध पिलाना भूल जाती है । बालक के पाँव से छकढ़ा उलट जाता है। आहट पाकर यशोदा आती है और शिशु को उठा लेती है। तुणायत वर्वडर बनकर आता है, और धूल फलाकर शिशु को आकाश में ले जाता है। बालक गला दबाकर उसे मार डालता है । यदुवंश के आचार्य गर्ग नन्द से मिलने आते हैं और चुपचाप बालक का नामकरण संस्कार करते हैं । कृष्ण बलराम के साथ क्रीड़ाएँ करते हैं। वे घुटनों; हायों के बल चलते हैं, कभी घिसटते हैं, पाव के धुंच बज उठते हैं। वे माताओं के पास आते हैं । बड़े होने पर, वे दोनों ब्रज के बाहर लीलाएं करते हैं । ये व्रजबालाओं को निहास कर तरहतरह के खेल खेलते हैं । ब्रजबालाएँ यशोदा से शिकायत करती हैं : वह दुहने के पहले बछड़ा छोड़ देता है, डोटने पर हसता है । बन्दरों को दूध-दही खिलाकर मटके फोड़ देता है। छीके पर रखा दही पाने के लिए यह क्या-क्या नहीं करता? पीड़े पर पीड़ा रखता है, ऊखल पर चढ़ता है,