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गुरुा तर. -२०. रत्नमाला
पृष्ठ क्र. - 88
गृष्ठ कार. - मधु - दोष गम्मूतोऽशुचि वस्तूनामप्याधाय रसान्तरम् ।
मधूयन्ति कथं तनापवित्रं पुण्यकर्मषु ।। ४७ अन्नमार्ग সংঘি
अशुद्ध वस्तूनाम्
वस्तुओं को अपि
भी (जैसे) मम्मूतः
घास को आध्याय
ग्रहण करके रसान्तरम्
अन्य रस रुप मधूयन्ति
शहद बनाती है
वह पुण्यकर्मसु
पुण्य कर्मों में अपवित्रम्
अपवित्र कैसे नहीं है?
तत्
कथम
अर्थ : मधु-मक्षिका अशुध्द घास आदि पदार्थों को ग्रहण करके अन्य रस में परिवर्तित करते हुए शहद बनाती है। वह शहर पुण्य कर्मों में अशुध्द कैसे नहीं है -? अर्थात् अवश्य है।
भावार्थ : शहद वास्तव में मधु मक्खियों के अण्डे, बच्चे एवं मांस का निचोड है। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक किलो शहद के लिए उन मक्खियों को लगभग ७०,००० किलो मीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, इस बीच वह ६०,००० फूलों से रस चूसती
उपासकाध्यपन नामक ग्रंथ में लिखा है कि
उच्छिष्ट मधुमक्षिका मधुरसं वेश्मन् विनाशं तदा। कोशानि प्रभवन्ति बहूजीवस्तेऽपि मृत्युक्षणे।।
रक्तं चाण्डजदेहिनां पललरुपं वा मधु भक्षणे। सत्रं नगरमिव प्रभाति बहु धायत्संहरन्तेऽप्यदयम् ||२८||
अध्याय क्रमांक . ४) अर्थात् प्रथमतः शहद मक्खियों की झूठन है। ग्रन्थकार ने शहद के छत्ते को विशाल
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