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________________ FRY गुष्प व्रा. .२० रत्नमाला पृष्ठ काऊ, - 85 के दोष ___ मद्यस्यापद्य मूलस्य सेवन पाप-कारणम् । परत्रास्तामिहाप्युच्चै - जननीं वांछयेदरम् || ४६. अन्धयार्थ : अवद्य पापों का मूलस्य मूल मधस्य मद्य का सेवनम् सेवन अरम् पाप-कारणम् पाप का कारण है। परन्त्राः परलोक की बातें तो उच्चैः दूर (ही) आस्ताम् इस लोक में अपि भी (वह) जननीम् माता से बलात्कार करना वांछयेत चाहता है। अर्थ : मद्य पापों का मूल है। परलोक की बात तो दूर ही रहे, परन्तु इस लोक में भी || मद्यपायी माता से बलात्कार करना चाहता है। भावार्थ : वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि शराब में इथाईल अल्कोहोल पाया जाता है जिसका रूपान्तरण होता है असिटान्डिहाईड रूप पदार्थ में। यह पदार्थ शरीर के अवयवों को कष्ट देता है। यह सब से खराब परिणाम करता है - यकृत पर। शराब के कारण यकृत को अक्युट हिपेन्टायटिन नामक रोग होता है, उस का अन्तिम फल है, जलोदर नामक महाभयंकर रोग का निर्माण। उस से रक्त || वाहिनी नलिकापर सूजन चढती है, वह फूलकर अन्त में फूटती है, उस से आन्तरिक रक्तस्त्राव होकर पीलिया और लिव्हर कोमा होता है। यकृत के साथ शराब का हृदय पर होने वाला गम्भीर परिणाम भी विलोकनीय है। असिटान्डिहाईड के संयोग से शरीर के प्रोटीन नष्ट होते हैं। इस से हृदय नियंत्रण शिथिल || होता है। हृदय नाड़ी अनियमित चलती है, रक्तवाहिनी कड़क होती है। खून की गुठली | | तैयार होती है। रक्ताभिसरण क्रिया में बारबार व्यत्यय आता है। अन्न नलिका की खराबी | और गले का कैन्सर इस में ७३ प्रतिशत शराबी होते हैं, ऐसा डाक्टरों का अनुभव है। गर्भवती द्वारा किया गया शराब का सेवन भी गर्भ के लिए हानिकारक है, ऐसा सिद्ध सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. म
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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