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________________ पुष्प वा. -२० रत्नमाला तृप्त .. - 78 । योषिता यानि स्त्री। वह स्व और पर के भेद से दो प्रकार की है। जिसके साथ अग्नि की साक्षी में सात फेरे खाये हैं अर्थात धर्मानुकल विवाह किया है, वह स्व-स्त्री है। 'ब्रह्मचर्याणवती शाश्वत पर्यों के दिनों में अर्थात् अष्टाहिका, पर्युषण, अष्टमी, चतुर्दशी | इत्यादि दिनों में स्व-स्त्री के साथ भी कामक्रीडा नहीं करता है। । स्व स्त्री के अलावा जितनी भी स्त्रियाँ हैं, वे सब पर हैं। उन के भी दो भेद हैं। जो दूसरे | || के द्वारा विवाहित है. वह परिगृहीता स्त्री है तथा जो अनाथ, स्व-छंद अथवा अविवाहित | | है, वह अपरिगृहीता है। पर-स्त्री का पूर्ण त्याग करना आध्यात्मिक दृष्टि से उचित है। कवि लिखता है - पर स्त्री पैनी छुरी तीन ठौर से खाय। धन हरे यौवन हरे, मरे नरक ले जाय।। आ. अमृतचन्द्र जी का उपदेश है कि - ये निजकलत्रमात्रं परिहर्तुं शन्कुवन्ति न हि मोहात् | निःशेष शेषयोषिनिषेवणं तैरपि न कार्यम् || (पुरूषार्थ सिध्दयुपाय- ११० अर्थ : जो जीव मोह के उदय से अपनी स्त्री मात्र को छोड़ने के लिए समर्थ नहीं है, उन्हें भी शेष समस्त स्त्रियों का सेवन नहीं करना चाहिए।। कामदेव बहुत बलिष्ट है। उसने समस्त जगत् को आक्रान्त कर रखा है। अतः तपत्याग के शस्त्रों के द्वारा उसपर पूर्ण विजय प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये, यदि उस में स्वयं को असमर्थ देखें, तो विधिपूर्वक स्व-दार सन्तोषव्रत गुरु चरणों में ग्रहण करना, सदगृहस्थ का कर्तव्य है। जो पर स्त्री का त्याग कर देता है व अध्यात्म पथ की ओर बढ़ने हेतु सतत प्रयत्न करता है, ऐसा भव्य जीव लौकिक एवं परलौकिक सुख पाता है। वीर्य ओज है। उसकी सुरक्षा शरीर की शान्ति, कान्ति और स्फूर्ति को कायम रखती है। मन को स्थिर करने में मदत करती है, बद्धि का वर्धन करती है। यह सब लौकिक सुखों की प्राप्ति का स्थान है। ब्रह्मचर्य से संयम निर्दोष पलता है, आत्मसाधना निर्विघ्न होती है, जिससे कर्मों का | नाश होकर मोक्ष प्राप्त होता है, यह पारलौकिक सुख है। यदि गृहस्थ पर-स्त्री को माता-पुत्री अथवा भगिनी आदि रूप मानता है, तो कामदेव होता है और शीघ्र मोक्ष प्राप्त करता है। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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