SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 ....२० गार्गदर्शक R रत्नमाला .. . 66 मन्दिर में देने योग्य वस्तुएं गौ-भूमि-स्वर्ण-कच्छादि दानं वसतयेऽहताम् । कर्तव्यं जीर्ण-चैत्यादि समुध्दरणमप्यदः ।। ३५, अन्वयार्थः अर्हताम् अर्हन्त के ज्ञातव्य है कि - दसतये वसतिका में श्रावकाचार संग्रह में गौ की जगह गो तथा गाय कर्तव्यं की जगह कर्तव्य छपा हुआ है। भूमि स्वर्ण सुवर्ण कच्छादि वस्त्रादि का दानम् दान कर्तव्यम् करना चाहिये अदः वह जीर्ण जीर्ण चैत्यादि मन्दिरों का समुध्दरणम् उध्दार अपि भी कर्तव्यम् करें। अर्थ : जिन मन्दिर में गाय-भूमि-सुवर्ण-वस्त्रादि देने चाहिये तथा जीर्ण मन्दिरों का जीर्णोध्दार भी कराना चाहिये। भावार्थ : मन्दिर में पंचामृताभिषेक हेतु दूध-दही और घी की आवश्यकता होती है। इनकी सुविधा के लिए मन्दिर में गाय देनी चाहिये। भगवान के श्री चरणों की अर्चना हेतु आवश्यक पुष्पों की व्यवस्था हेतु बाग लगाने के लिए भूमि दान करनी चाहिये। छत्र-चँवर-भामण्डलसिंहासनादि के निर्माण हेतु मन्दिर में सुवर्ण-चांदी आदि द्रव्य देने चाहिये। भगवान की प्रतिमा को पोछने के लिए अथवा अचानक अन्य गाँव से पधारे हुए श्रावक को अपने आवश्यक कर्मों की पूर्ति के लिए शुद्ध वस्त्रों की आवश्यकता होती है-एतदर्थ मन्दिर में वस्त्र-दान करना चाहिये। आदि शब्द मन्दिर की आवश्यक जितनी भी वस्तुएं हैं, उनको सुचित करता है। अतः मन्दिर में जो कुछ आवश्यक वस्तुयें हैं, उनका दान श्रावक को करना चाहिये। ___ आज न जाने कितने प्राचीन जिनमन्दिर जर्जरित अवस्था में पड़े हुए हैं। उन का उद्धार करना, प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है। उन के संरक्षण से ही हमारी संस्कृति तथा इतिहास जीवित रहेगा। एक जीर्ण मन्दिर का जीर्णोध्दार करने से उत्पन्न होनेवाले पुण्य के विषय में जैनाचार्यों का : मार्मिक कथन मननीय है कि " एक मन्दिर का जीर्णोध्दार करने से अनेकों नये मन्दिर बनवाने का पुण्य लगता है । ____ इतिहास की सुरक्षा के लिए, आयतनों का विनय कायम रखने के लिए जीर्णोध्दार ही उचित ! उपाय है। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy