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रत्जन्माला अणुव्रतानि पञ्चैव त्रिप्रकारं गुणव्रतम् । शिक्षानतानि चत्वारि गुणाः स्यु दशोसरे।।
(यशस्तिलक चम्पू) इस के चतुर्थपाद में कुछ अन्तर है, शेष श्लोक समान है।
ब्रह्म नेमिदत्त ने लिखा है कि
__ अणुव्रतानि पञ्चैव, त्रिप्रकार गुणततम् । शिक्षाप्रतानि चत्वारि, गृहिणां द्वादशप्रमम् ।।
(धर्मोपदेश पीयूषवर्ष श्रावकाचार ४/१) इस का भी चतुर्थषाद भिन्न है।
आ. जटासिंहनन्दि ने लिखा है कि
अणुव्रतानि पञ्चैव, त्रिनकारं गुणवतम् । शिक्षाव्रतानि चत्वारि, इत्येतद् द्वादशात्मकम् ।।
(वरांगचरित्र इस श्लोक में भी चतुर्थ पाद परिवर्तित है। अन्यत्र लिखा है कि -
अणुव्रतानि पञ्चैव त्रिप्रकारं गणततम् । शिक्षाव्रतानि चत्वारि एते द्वावशधा व्रतम् ।।
(व्रतसार श्रावकाचार १३) इस श्लोक में भी चतुर्थ पाद के अतिरिक्त पूर्ण श्लोक का साम्य है।
२. मुहर्त गालितं तोयं. प्रासुकं प्रहरद्वयम् ।
उष्णोदकमहोरानं ततः सम्भूचिम्मो भवेत् ।। २ अर्थात :- छना हुआ पानी मुहूर्त तक, प्रासुक दो प्रहर तक तथा गर्म जल चौबीस घण्टे शुध्द रहता है। तत्पश्चात् सम्मूर्छिम हो जाता है। ___ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार में (१२/११०) ऐसा ही श्लोक है। अन्तर इतना ही है कि ततः
की जगह पश्चात् और सम्मूचिठमं की जगह सम्मूर्णित लिखा हुआ है। ___ शास्त्र के प्रति मन में उत्पन्न हुई भक्ति ने इस कार्य को सम्पन्न कराया है। इसमें जो | त्रुटियाँ अवशेष हो, उसको बुध्दिमान् शोध कर पढ़ें।
समस्त सहयोगियों को आशीर्वाद |
मुनि सुविधिसागर
सुविधि शाठा चद्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद..