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________________ E : IITRI. - २० रत्नमाला माता - प्रतिदिन त्रिकाल में (प्रातः, मध्याह्म व सायंकाल में) त्रययोगों की शुद्धि पूर्वक १२ आवर्त | व ४ प्रणाम करता है तथा दो घड़ी कालपर्यन्त सामायिक्त करता है, उस श्रावक को सामायिक प्रतिमाधारी कहते हैं। सामायिक प्रतिमाधारी को सामायिक करते समय, द्रव्य, क्षेत्र, काल व भावों की शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए। ४. प्रोषधोपचास प्रतिमाधारी : अष्टमी. चतुर्दशी को प्रोषध कहते हैं, उस दिन उपवास करने को प्रोषधोपवास कहते हैं। प्रोषध-उपवास करने वाला प्रोषधोपचास प्रतिमाधारी है। ऐसा मावक उपवास के दिन आरम्भ, परिग्रह का त्याग कर के अपना उपयोग आत्मा के सन्मुख करता है। शाक बीज ५. सचित्त त्याग प्रतिमाधारी : मूल-फल-शाक-शाखा-करीर-कन्द-प्रसून और बीज इनको अपक्वावस्था में न खानेवाला व्रती सचित्त त्याग प्रतिमाधारी है। मूल गाजर, मूली आदि फल आम, अनार, अमरुद आदि हरे पत्तेवाली सब्जी शाखा वृक्ष की नई कोंपल करीर बांस का अंकुर कन्द जमीकन्द प्रसून गोभी आदि के फूल गेहूं आदि. _ये अप्रासुक अवस्था में सचित्त (जीवयुक्त) होते हैं। अतएव इस को जो नहीं खाता, उसे सचित्त त्याग प्रतिमाधारी कहते हैं। इस में यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि श्रावक अभक्ष्य भक्षण नहीं करता है, अतएव श्रावक अवस्था के प्रारम्भ में ही जमीकन्दादिक का त्याग हो जाता है। यहाँ भक्ष्य पदार्थों में यदि वह पदार्थ सचित्त हो, तो उसको खाने का निषेध किया है। प्रासुक कैसे करें? सुखाना, पकाना, आग पर गर्म करना, चाकू के द्वारा छिन्न-भिन्न करना, नमक आदि मिलाना यह सब पदार्थों को प्रासुक करने की पध्दतियाँ हैं। कई लोग मात्र गरम करने पर ही प्रासुकता स्वीकार करते हैं, अन्य विधियों से वे प्रासकता को मान्य नहीं करते, उन्हे मूलाराधना ८२, गोम्मटसार (जीव काण्ड) २२५ देखना चाहिये। सुविधि झाल चलिरका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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