SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ २० रत्नमाला अनेक अर्थ, अर्थ शब्द के हैं जिसमें से प्रयोजन यह अर्थ यहाँ गृहीत है। जिन कार्यों को करने का कोई अर्थ या प्रयोजन नहीं होता, वे कार्य अनर्थ हैं। उनसे विरक्त होना अनर्थदण्ड व्रत है। आचार्य पूज्यपाद ने लिखा है कि - असत्युपकारे पापादानहेतुरनर्थदण्डः। ततो विरतिरनर्थदण्डविरतिः । (सर्वार्थसिद्धि ७/२१) : अर्थात् उपकार न होकर जो प्रवृत्ति केवल पाप का कारण है, वह अनर्थ दण्ड है। इससे विरत होना अनर्थदण्ड विरतिव्रत है। इसके पाँच भेद हैं- यथा पापोपदेशहिंसादानापध्यानदुःश्रुती पञ्च । प्राहुः प्रमादचर्यामनर्थदण्डानदण्डधराः ।। ( रत्नकरण्ड श्रावकाचार ७५) अर्थ : पापों के नहीं धारण करने वाले निष्पाप आचार्यों ने अनर्थदण्ड के -५ भेद कहे हैं। पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुति और प्रभादचर्या । (अ.) पापोपदेश विरति : "पापस्य उपदेशः पापोपदेशः " (पाप का उपदेश, पापोपदेश | है। इस तरह यहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास का प्रयोग है। आचार्य प्रभाचन्द्र के अनुसार पापानार्जन हेतुरुपदेशः पापपदेशः केआर्जन हेतु जो उपदेश दिया जाता है, वह पापोपदेश है। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका ७६) , T 31 जिन कार्यों को करने से पापों का उपार्जन होता हो, यथा-अमुक देश में प्राणी सस्ते में मिल जायेंगे, वहाँ से उन्हें खरीदकर अमुक देश में बेचो तो तुम्हें लाभ होगा इस तरह | के उपदेश को पापोपदेश कहते हैं। आ. समन्तभद्र ने लिखा है कि तिर्यक्क्लेशवणिज्या हिंसारम्भ प्रलम्भनादीनाम् । कथाप्रसंग प्रसवः स्मर्तव्य पाप उपदेशः । 1 - अर्थ : तिर्यंचों को क्लेश पहुँचाने का, उन्हें बंध करने आदि का उपदेश देना, तिर्यंचों के व्यापार करने का उपदेश देना, हिंसा, आरम्भ और दूसरों को छल कपट आदि से | ठगने की कथाओं का प्रसंग उठाना ऐसी कथाओं का बार-बार कहना, यह पापोपदेश अनर्थदण्ड है। पाप के कारणभूत उपदेश को न देना परमोपदेश - विरति है। (ब.) हिंसादान विरति : हिंसा की वस्तुयें देना हिंसादान है। आ. समन्तभद्र के | अनुसार - परशुकृपाण खनित्र उचलनायुधति श्रृंखलादीनाम् । हेतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः ।। ( रत्नकरण्ड श्रावकाचार ७७१ अर्थ हिंसा के कारणभूत फरसा, तलवार, कुदाली, आग, अस्त्र-शस्त्र, विष और साकल आदि के देन को ज्ञानी जन हिंसादान नाम का अनर्थदण्ड कहते हैं। JABA ---- सुविधि ज्ञान चक्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. -
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy