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________________ रत्नमाला निरारम्भः साधु गुरु हैं S ai.. - २०० रत्नमाला 24ta s... - 14 .. - 14 साधु का स्वरूप दिगम्बरो निरारम्भो नित्यानन्दपदार्थनः। धर्मदिक् कर्मधिक साधुर्मुसरित्युच्यते बुधैः ।।८ अन्वयार्थ : दिगंबरः दिगंबर आरम्भ से रहित नित्यानन्द पद नित्यानन्द पद के अर्थिनः धर्मदिक धर्म का वर्धन करनेवाले कर्मधिक कर्म को जलानेवाले साधुः गुरुः ऐसा बुधजनों के द्वार उच्यते कहा गया है। अर्थ : जो दिगम्बर हैं, निरारम्भ हैं, नित्यानन्द पद के इच्छुक हैं, जो धर्म को बढानेवाले है जो की को जलानेवाले हैं. ते साधा हैं - ऐसा बुधजनों ने कहा है। भावार्थ : यहाँ सच्चे साधु का स्वरूप बताया जा रहा है। जो आत्म तत्त्व को साधते है, वे साधु हैं। साधु का स्वरूप बताते हुए नेमिचन्द्र सिध्दान्त चक्रवर्ती लिखते हैं कि - दसणणाण समग्गं मागं मोक्खस्स जो ह चारितं। साधयदि णिच्च सुध्दं साहू स मुणी णमो तस्स।। (द्रव्यसंग्रह - ५४) अर्थ : जो दर्शन और ज्ञान से पूर्ण, मोक्ष का मार्गभूत और सदा शुद्ध ऐसे चारित्र को प्रकट रूप से साधते हैं, वे मुनि साधु परमेष्ठी हैं. उनके अर्थ मेरा नमस्कार हो। इस श्लोक में साधु के लिए ५ विशेषणों का प्रयोग किया गया है। १. दिगम्बर : दिगेव अम्बरं यस्य सः दिगम्बरः, परिग्रहरहितमित्यर्थः। दिशा ही है वस्त्र जिसका. वह दिगम्बर है। परिग्रह रहित यह उसका अर्थ है। अर्थात | जिसने बाह्याभ्यन्तर सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर के यथाजात (नग्न) रूप धारण किया है, वह दिगम्बर है। ___२. निरारम्भ : आरम्भो हिंसनशीलानां कर्मोच्यते। (तात्पर्यवृत्ति ७/१५) अर्थ : हिंसन शील मनुष्यों को कर्म का आरम्भ कहते हैं। आरम्भो नास्ति यस्य सः || निरारम्भः। जिसने आरम्भ कार्यों का पूर्णतया त्याग कर दिया है, वह निरारम्भ है। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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