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________________ पुष्प E. - २०- रत्नमाला पल ग्र..101. तिथौ चैत्य चतुर्दशी - क्रिया व नित्य क्रिया चतुर्दश्यां तिथौ सिध्दश्चैत्यश्रुत-समन्विते पञ्च। मुरु शान्तिनुती नित्यं चैत्यं च गुरुरपि।। ५५. अन्वयार्थ : चतुर्दश्याम चतुर्दशी [ नासत्य है कि तिथि के दिन श्रावकाचार संग्रह पत्र शब्द नहीं है तथा सिद्ध नुती की जगह नुते शब्द है। चैत्य छन्द की दृष्टि से पञ्च शब्द नहीं होना चाहिये। श्रुत श्रुत (भक्ति से | चैत्यं च गुरारपि की जगह पञ्चगुरु अपि छपा समन्वितः युक्त पंचगुरु (और) शान्ति शान्ति भक्ति (पूर्व) नुती नमन (करना चाहिये। नित्यम् नित्य अपि चैत्यम् चैत्य तथा) पज्जगुरुः पंचगुरु भक्ति सुर्यात् करें। अर्थ : चतुर्दशी के दिन सिध्द-चारित्र. श्रुत. पंचगुरु व शान्तिभक्ति पूर्वक्त नमन करना चाहिये व नित्य भी चैत्य व पंचगुरु भक्ति करनी चाहिये। भावार्थ : चामुण्डराय लिखते हैं कि - चतुर्दशी दिने तयोर्मध्ये सिध्द-श्रुत-शान्तिभक्तिर्भवति। (चारित्रसार) अर्थात : प्रतिदिन देववन्दना के समय चैत्यभक्ति और पंचगुरु भक्ति बोली जाती है। चतुर्दशी के दिन उसके साथ सिद्ध-श्रुत और शान्ति भक्ति बोलनी चाहिये। पं. आशाधर जी ने चतुर्दशी क्रिया में २ मत प्रस्तुत किये हैं। यथा - ___ त्रिसमय वन्दने भक्तिद्वयमध्ये, शुतनुतिं चतुर्दश्याम् । प्राहुस्तभ्दक्तित्रयमुखान्तयोः केडपि सिद्ध शान्तिनुती।। (अनगार धर्मामृत ९/४५) अर्थ : त्रिकाल में देव-वन्दना के समय जो नित्य चैत्यभक्ति और पंचगुरु भक्ति की जाती है, परन्तु चतुर्दशी के दिन श्रुतभक्ति करनी चाहिये। अन्य मतानुसार सिध्दभक्ति और शान्तिभक्ति भी बोलनी चाहिये। यादि किसी कारणवशात् क्रिया चतुर्दशी कौन कर सकें. तो दूसरे दिन करना चाहिये। कहा भी है कि - चतुर्दशी क्रिया धर्म व्यासङ्गादिवशान चेत् । कर्तुं पार्येत पक्षान्ते तर्हि कार्याष्टमी क्रिया।। (अनगार धर्मामृत ९/४६) अर्थ : किसी धार्मिक कार्य में फंस जाने के कारण यदि साधु चतुर्दशी की क्रिया न कर | सकें. तो अमावस्या और पूर्णमासी को अष्टमी क्रिया करनी चाहिए। वर्तमान में प्रत्येक क्रिया के उपरान्त समाधिभक्ति करने की परम्परा मुनिसंघों में प्रचलित है। प्रतिदिन चैत्यभक्ति एवं पंचगुरु भक्ति करनी चाहिये। - - - - - - - - -- - - जल सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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