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________________ २६४ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार आगे पडिगाहन आदि नौ प्रकार के पुण्य कार्यों के करने पर किससे कौनसा फल प्राप्त होता है ? यह कहते हैं - (तपोनिजि तप के बजाय नियों को प्रणतेः) नमस्कार करने से ( उच्चैर्गोत्रं ) उच्चगोत्र, ( दानात् ) आहारादि दान देने से ( भोगः ) भोग, (उपासनात्) प्रतिग्रहण आदि करने से (पूजा) सम्मान, ( भक्ते: ) भक्ति करने से (सुन्दररूपं) सुन्दररूप और (स्तवनात्) स्तुति करने से (कीति:) मृयश, (प्राप्यते) प्राप्त किया जाता है । ___टोकार्थ-यतियों को प्रणाम करने से उच्चगोत्र का बंध होता है। भोजन की शुद्धिपूर्वक दान देने से भोगों की प्राप्ति होती है। पडगाहनादि करने से सर्वत्र पूजा-प्रभावना होती है । भक्ति-उनके गुणानुराग से उत्पन्न अन्तरंग में श्रद्धाविशेष से सुन्दर रूप और स्तुति अर्थात् 'आप ज्ञान के सागर स्वरूप हैं' इत्यादि स्तुति करने से कीर्ति प्राप्त होती है। विशेषार्थ--जिस कुल में मोक्षमार्ग का प्रवर्तन हो सके, वे उच्च कुलोत्पन्न उच्चगोत्री कहलाते हैं । जो तप के निधान हैं, पंचेन्द्रियों के विषयों से अत्यन्त विरक्त हैं, ऐसे अट्ठावीस मूलगुणों के धारक नान दिगम्बर साधु उत्तम पात्र को श्रद्धा से नमस्कार करने से उच्चगोत्र की प्राप्ति होती है । अर्थात स्वर्ग लोक में जन्म होता है। वहाँ से आकर तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि पदों की प्राप्ति के योग्य उच्चगोत्र की प्राप्ति होती है। उत्तम पात्रों को दान देने से भोगभूमि के भोग अथवा स्वर्गलोक के भोगों को भोगकर मनुष्यों में राज्यलक्ष्मी आदि भोगों को पाकर अन्त में निर्वाण सुख की प्राप्ति होती है । साधुओं की सेवा उपासना-नवधाभक्ति आदि करने से सर्वत्र सम्मान की प्राप्ति होती है, इसे ही पूजा कहा है । साधुओं के गुणों में अनुराग रखने से श्रद्धा, भक्ति उत्पन्न होती है और भक्ति से सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है। तथा इनका स्तवन करने से तीनों लोकों में फैलने वाली कीर्ति-सुयश की प्राप्ति होती है ।। २५ ।। ११५ ।। नन्वेवंविधं विशिष्टं फलं स्वल्पं दानं कथं सम्पादयतीत्या शंकाऽपनोदार्थमाहक्षितिगतमिव वटंबीजं पात्रगत दानमल्पमपि काले । फलति च्छायाविभवं बहुफलमिष्टं शरीरभृताम् ॥२६॥
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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