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________________ [ ९३ अठारह दोषों से रहित वीतराग सर्वज्ञदेव के अतिरिक्त सब कुदेव हैं और हिंसा, विषय- कषाय, आरम्भ को पुष्ट करने वाले प्रत्यक्ष अनुमान प्रमाण आदि से जो दूषित हैं, ऐसे शास्त्र कुशास्त्र कहलाते हैं। तथा जो हिसादि पंच पापों के सर्वथा त्यागी, आरम्भ, परिग्रह से रहित, देह से मोह रहित, उत्तम क्षमादि दश धर्मों के धारक, याचनावृत्ति से रहित एवं ज्ञान-ध्यान तप में अनुरक्त, रत्नत्रय की रक्षा के लिए दिन में एक बार रस-नीरस का विकल्प नहीं करते हुए शरीर को भोजन देने वाले ऐसे नग्न दिगम्बर मुनिराज, एक वस्त्र को धारण करने वाली आदिका तथा कोपीन और उत्तरीय वस्त्र को धारण करने वाले क्षुल्लक ये तीन लिंग आगम में बतलाये हैं । इनको छोड़कर समस्त कुलिंगी हैं । सम्यग्दृष्टि कुलिंगियों को तथा कुदेव, कुशास्त्र को भय, आशा, स्नेह, लोभ के आधीन होकर नमस्कारादि, विनयादि नहीं करता कि यदि मैं इनकी मान्यता नहीं करूंगा तो ये देव मेरी सम्पत्ति आदि का नाश कर देंगे, द्वेषवश रोगादि उत्पन्न कर देंगे मुझे अनेक प्रकार के दुःखों एवं संकट में डाल देंगे । इनकी भक्ति करने से मुझे राज्य सम्पदा पुत्रादि सन्तान की प्राप्ति हो जायेगी, ये संकट में मेरी रक्षा करेंगे इस आशा से भी इनका सत्कार वन्दन नहीं करे । इस देवता के प्रति मुझे स्नेह है, हमारे ऊपर कष्ट आ जाय तो देव ही तो रक्षक हैं, ऐसे स्नेह से भी कुदेव की आराधना नहीं करे । तथा मैंने जब से इन देवों की उपासना करना प्रारम्भ किया है। तब से लाभ ही लाभ हो रहा है इस प्रकार के लोभ के वशीभूत होकर भी कुदेवों की मान्यता न करे । इसी प्रकार भय, आशा, लोभ और स्नेहवश संसार में उलझाने वाले कुशास्त्रों का प्रवचनादि कर प्रकाशनादि नहीं करे कि मेरे पिता- पितामह आदि इन शास्त्रों की मान्यता से बहुत द्रव्य उपार्जन करते थे, मैं भी ऐसा ही करूंगा तो मुझे बहुत धन लाभ होगा । इन शास्त्रों के पढ़ने में बड़ा रस आता है ये कथाएँ बड़ी मनमोहक हैं, तथा इन शास्त्रों के अध्ययन से देवता भी वश में हो जाते हैं, इत्यादि कारणों से भी सम्यग्दृष्टि कुशास्त्रों की उपासना न करे । रत्नकरण्ड श्रावकाचार भय, आशा, स्नेह और लोभ से सम्यग्दृष्टि मिथ्यावेषधारी कुगुरु की भी उपासना नहीं करे कि ये तपस्वी, विद्यावान, लोकपूज्य हैं, इनमें दृष्टि, मुष्टि मारण, उच्चाटनादि अनेक प्रकार की शक्ति है, इनसे मेरा अहित न हो जाय इस प्रकार भय से भी प्रणामादि न करे । तथा ये बड़े करामाती हैं इनसे विद्या आदि चमत्कार सीख कर अपना कार्य सिद्ध कर लूं तो अच्छा है इस आशा से भी नमन न करे ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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