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पूजा एवं विधान साहित्य ]
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नवरहवा
११. न्हवरप - ४ ।
संस्कृत ।२३ १२. क्षेत्रपाल - मुनि शुभचन्द ।
हिन्दी पद्य । २४ क्षेत्रापरल को विनती लिख्यते :जनको उचात भर सनकालियान ।
सांति गुरति भव्य जन सुखकारी ।। जैन० ।। टेर घुचरियालो केस सिंदूर तेल छवि को ।
मोतियां की माला झावी उन्यो भानू रवि फो ।।१।। सिर पर मुकट कुण्डल कानां सोहती।
कठी सोहे घुगधुगी हीय हार मोहती ।।२।। मुख सोहे दांता न तंबोल मुख नुवती ।
नेणा रेखा काजल की तिलक सिर सोहतो ॥३॥ बाजूबंध भी रस्वा प्रौच्याने पोचि लाल की।
नवग्रह यांगुल्या ने पकडयो डोरि स्वान की ॥४॥ कटि परि घूघर तन्यौं लाल पाट को ।
जंग घनघोर वाले रमे झमि भाट कौ ॥५॥ पहरि कडि मेखला पग तलि पावड़ी ।
___ चटक मटक वाजे खुटया मोहै भाबड़ा ।।६।। छड़ी लिया हाथ में देहुरा के वारण ।
पूजा कर नरच रखवाली के कारण ।।७।। नृत्व कर देहुरा के वारंएकज लाप के।
सान तौड़े प्रभु पाम जिन गुरण बगाय के ||| पहली क्षेत्रपाल पूजै तेल कांवी वाकुलां ।
गुगल तिलोट गुल पाठौं द्रव्य मोकला 180 रोग सोग लाप धाडि मरी कौं भगाय दे।
बालकां की रक्षा करै अन धन पूत दे ॥१०॥ गीत पहली गाय जो रझाय क्षेत्रपाल कौ।
__मुनि सुभचन्द गायो गीत भैरूलाल कौ ॥११।। १३. चतुर्विशति पुजाष्टक - ४ ।
संस्कृत । पत्र सं०२५ १४. वंदेतान जयमाल माघनंदी।
संस्कृत । पत्र सं० २६ १५. मुनिश्वरों की जयमाल - 50 जिणदास ।
हिन्दी । पत्र स० ३२ १६. दश लक्षण पूजा
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संस्तृत। १७. सोलहकारण पूजा १८, सिद्ध पूजा वनारसीदास ।
हिन्दी। पत्र सं०३७
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