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[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
प्रारम्भ
बोमंकार अपार है जाको धरिये ध्यान । सबै वस्तुकी सिद्धि र अरु घट उपजे ज्ञान । कथा काग्निनि कनक सों मति बांध त हैन । ए दोऊ है अति बुरे पन्ति नरक में देत।।
अन्तिम
क्षिनक मांझ करता पुरुष करन और सौ और । जनम सिरानी जात है छोडि चन्द जग और ॥३५॥ संवत सत्रह से अधिक बीते बीयर पाठ।
काती बुदि दोहज को कियो चन्द इह पाय ॥३६॥ पारवनाथ स्तुति भी दी हुई है।
६५१२ इन्द्रनंदिनीतिसार-इन्द्रनंदि । पन सं०६ । मा १२४४ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय..नीति । २०कालXI कालX । पूर्ण । वेष्टन सं० ३६०/७१ प्राप्ति स्थान-दि जैन संभवनाथ मन्दिर उदयपुर ।
६५१३. प्रतिसं० २। पत्र स०७ । ले०काल XI पू । बटन स० २६१/41 प्राप्ति स्थान-दि जैन गंभवनाथ मन्दिर उदयपुर ।
६५१४. प्रति सं०३ । पत्र स०७ । लेकाल X । पूर्ण। वेष्टन स० ३६२/६ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन संभवनाथ मन्दिर उदयपुर ।
६५१५. उपदेश बावनी--किशनदास । पत्र सं० ११ । प्रा० १०५४५ च । भाषाहिन्दी पच । विपय-सुगाषित । र. काल सं० १७६७ पासोज सुदी १०ले. काल सं० १९५० । पूर्ण । वेष्टन सं० २१४, ८६ । प्राप्ति स्थान-दि जैन मंदिर कोटडियों का हूगरपुर । विशेष -
श्रीय संघराज लोकांगछ सरिताज गुरु,
तिनकी कृपा ज कविताइ पाइ पावनी । संवत सत्तर सतराहे विजय दशमी को,
नथ की समापत भद है मम भावनी।। साथ बीस ग्यांनमा की जाइ श्री रतनबाई,
तज्यो देह तापें एह रची पर बावनी। मत कीन मति लीनी तत्वों ही रूची दीनी,
वाचक किशन कीनी उपदेश बावनी ।। ६५१६. उपदेश बीसी-रामचन्द ऋषि । पत्र स० ३ । आ० १०३४५ इञ्च । भाषा-हिन्दी । विषय-सभाषित | र०काल सं० १९०८ बैशाख सुदी ६ । ले० काल सं० १८३६ चैत्र बुदि । पर्या। वेस्टन स. १६४। प्राप्ति स्थान--दि जैन मन्दिर बोरसली कोटा।