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विषय --नीति एवं सुभाषित ६५०१. प्रभर बावनी--केशवदास (लावण्यरत्न के शिष्य) । पत्र सं० १५ । ग्रा० १०x ४१ इंच । भाषा हिन्दी पञ्च । विषय-सुभाषित । र०काल सं० १७३६ सावमा सुदी ५ गुरुवार । ले काल सं. १८६६ वंशास्त्र बुदी ५ ५ पुर्ण । वेष्टन सं०७४ 1 प्राप्ति स्थान-दि० जन छोटा मन्दिर बयाना ।
विशेष-पत्र स० १३ से राजुल नेमी बारहमासा केशवदास कृत (से० १७३४) दिया हुया है। शीतकाल सर्वया भी दिया हुना है।
अक्षर बावनी को याद अन्त भाग किस प्रकार... श्रादि भाग
मोकार सदा सस्त्र देवन ही जिन सेवत पंछित इच्छिल पार्व। सावन अक्षर मांहि शिरोमणी योग योगीसर इस ही ध्यावे । ध्यान में ज्ञान में वेद पुराण में कीरति जाकी सबै मन भाव । केशवदास को दीजिये दौलत भावम् साहिब के गुण गावै ॥६॥
यादव कोटि बस दूरदंत के राजतिराज त्रिखंडमुरारी। होतत्र कोउन मेटि सबै जब देवपुरि खिन माहि उजारी । जोर सरासर जोर कर छवी राति के लेखन लागतकारी ।
पाल जंजाल कहा करो केशव कर्म की रेख टर नहि टारी १५० अन्तिम
वाव अक्षर जोय कर भैया गाऽपध्यावहि मैं भस्म आवै । सतरसौत छत्तीस को श्रावण सुदि पांचै भगुवार कहावं । सुख सौभाग्यनी फौतिन की हुवं बावन अक्षर जो मुरण गायें ।
1 लावण्यरन मुरु भुपसावर केशवदास सदा सुख पावै ।। इति श्री केशवदास कृत अक्षर दावनी संपर्ण ।
६५१०. अक्षरबावनी-x पत्रसं० १४ । प्रा० १३४७ इन्च । भाषा-हिन्दी 1 विषयसुभाषित । २० काल x | ले०काल x | पूर्ण । वेषन सं० २१६। प्राप्ति स्थान-दि. जैन संभवनाथ मन्दिर उदयपुर ।
विशेष-पत्र से धागे अध्यात्म बारहखडी है।
६५११. प्रङ्क बत्तीसी--बन्द । पत्र सं०३। आ०१०x४६ इन्च । भाषा -हिन्दी । विषयसुभाशित । र०काल स. १७२८ । ले०काल X । पूर्ण वेटन सं० २६० । प्राप्ति स्थान -दि.जैन मन्दिर पाश्वनाथ इन्दरगढ़ (कोटा)
विशेष-मादि अन्त भाग निम्न प्रकार है