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इतिहास ]
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बादि गजेन्द्र तिहां ज भीड जिहां पद्मनंदि मृगरंजन गजे । कौरव किंचक स्वाहाजु लडि ज्यहां भीम महा भड हाथ न वजे । रामकीति के पट्टपयोज प्रबोदनकु' रविराज सुरजे। देवजी ब्रह्मादि गच्छनायक सारदागच्छ सदा ए छाजे ॥३॥ वादि कमत फणि दरवागापति वादिकरी समिह नयो है। वादि जलद रामिरण ए गुरु वादिय बद को भेद लयो है । राय श्री संघ मिलि पमनंदि फुरामकीर्ति को पट्ट दयो है । ब्रह्म को देवाजी गुरुजी या इन्द्र नारद प्रणाम कियो है ।।४।। राजगुरु पद्मनंदि समोवर मेघ कछु महि पावतम् । ताको निरंतर चाहत चातक तोकपाट जिन धावतहि। मेघ निरन्तर रक्त निरतु भारथि दानकि गाजतुहि । भो दान समिमुख सामतु गौर कल्याण मुनि गुग गावहि ।।५।। श्रीमूलसंघ सरणमार पद्यनंदि मट्टारक सकनकीति गुरुसार । अवनकोति भवतारक शानभूषण गुरुवंग विजवकीर्ति सूमचन्द्र । सुमतिकीर्ति गुणकीति वंदो भवियण मनरंगह तमपट्टे गुरु जाणिय । श्रीवादीभूषण यति राय पुजराज इमि उच्च गुरु सेविचरपति पाय ॥६॥
पंचमहायतसार पंचसमिति प्रतिपालि । गुप्तित्रय सुखकार मोह मोहा दूरि टारिन । पंचाचार विचार भेद विज्ञान' सुजाणे । पागम न्याय विचारसार सिद्धांत बसाणे । गुणकीति घट्ट निपुण श्री वादिभूषण बंदो सदा । पृजराज पंडित इम उच्चरे गुरुवरण सेवो मुदा। सबल निसारण घनाघन गजित माननी लाद जु मङ्गल गायो। विद्या के तेज रदे घरि हेत कु उरवादिपाय बंदन यायो। मेघराज के नाद जसि गुजरात तात जुगमानी को माल गमायो। वदे धर्मभूषण पद्यनंदि गुरु पाटण माहि जुसामो करायो। एकरतांवर पिर रहे करणी कथनी एक उर धरे । एक लोभ के कारण चारसा से एक मंत्र धारि । म्येहमत फिरिहि एक स्वादिक नाम विकलडरि।
यहे धर्मभूषण पद्मनंदि निकलंक कु भुप प्रणाम करिहि ॥ इसके आगे निम्न पाठ और हैं
नेमिपच्चीसी कल्याणकीति हिन्दी
चौबीस तीर्थकर स्तुती ,
६२८२. पट्टायली-X । पत्रसं० ५ । प्रा० १०४४ इन्च । भाषा--हिन्दी गद्य । विषयइतिहास । र० काल x | लेकालx। पूरणं । वेष्टन सं०४८ । प्राप्ति स्थान-दि. जैन मन्दिर नागदी दी।