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काव्य एवं चरित ]
चौपई
गुरू गौतम गणघरदे आदि, द्वादशांग अमृत भास्याद । सुमति गुप्त पालन तप धीर, ते बंदी जो ज्ञान गम्भीर ॥१०॥ गणधर पदपावन मुरणकंद, मट्टारक जसकीत्ति मुनिन्द । तापर प्रगट पहुमि जग जासु, लीला किबो भीन को वास ॥११॥ नाम सुखेमकीर्ति मुनिराह, जाके नामु दुरित हरि जाय । ताहि पत श्रुत सागर पारण, त्रिभुवनकीति कीर्ति विस्तार ॥१२॥ ताहि समीप सुमति कछु लही, उत्तम बुद्धि मेरे मन भई । नैनानन्द प्रादि जो कही, तसी विधि बांची चौपई ॥१३॥
असिम पाठसोरठा- छंद भेद पद भेद हो तो कह जान नहीं।
साको कियो न खेद, करम निज मस्तिस itori दोहा अगम प्रागरो पवरूपुर उठ कोह प्रसाद ।
तरे तरङ्गि नदी बहे नीर अमी सम स्वाद ॥१६॥
चौपई भाषा भाउ भली जहि रीत, जानै बहुत गुरणी सौ प्रीत । नागर नगर लोग सब सुखी, परपीडा कारन सब दुखी ॥२००। धन कर पूरन तुग प्रवास, सबहि नि:सेक धर्म के दास । छवाधीस हमाल वंरा, अकबर नन्दन बैर विध्वंस ॥१॥ तखत बखत पूरो परचंड, सूर नर नृप मानहि सब दंड । नाग काम गुन प्रायु वियोग, रचि पचि ग्रायु विधाता योग ॥२॥ जहांगिर उसमा बोजे काहि, श्री सुलतान दीस साहि । कोस देस मन्त्री मति गूह, छत्र चमर सिंघासन रूद्ध ॥३॥ कर असीस प्रजा सब ताहि वरन कहा इति मति प्राहि ।
संवत सोलहस उपरत, सहि जानहु बरस महंत ॥२०४।। सोरठा- माघ उजारी पाख, पुरवासूर दिन पञ्चमी ।
बंध चौपई भाषा, नही सत्य सासरती ॥२०५।। वोहा- कथा सुदर्शन सेठ की परे सूने जो कोय ।
पहिले पावै देव पद पाछे सिवपुर होय ॥२०६१) इति सुदर्शन चरित्र भाषा संपूर्णम्
४१८९. सुभाहु चरित्र-पुण्यसागर । पत्र सं० ५। पा. १00X४३ इञ्च । भाषाहिन्दी । विषय-चरित्र । २० काल सं० १६७४ । ले० काल X । पूर्ण । वेष्टन सं० ३३७ । प्राप्ति स्थान-म. दि. जैन मन्दिर अजमेर ।