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[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
४१८५. सुदर्शन चरित्र-० नेमिदत्त । पत्र सं० ७६ । पा. १०३४ ५ इञ्च । भाषासंस्कृत । विषय...-चरित्र ।र०काल X । से०काल X । पूर्ण | वेष्टन सं० ६६२ प्राप्ति स्थान-भा दि० जैन मन्दिर अजमेर ।
४१८६. प्रति सं०२। पत्र सं० ६३ । आ०११:४५ इञ्च । ले०काल सं० १६०५ भादवा सुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन सं०-२३५ । प्राप्ति स्थान--दि. जैन पार्श्वनाथ मंदिर इन्दरगढ़ (कोटा)
विशेष—इदं पुस्तकं ज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थं पुस्तकं श्री जिनमन्दिर चहोडित रामचन्द्र सुत भवानीराम अजमेरा वास्तव्य बू'दी का गोठड़ा अनार सुखपूर्वक इन्द्रगढ़ वास्तव्यं ।
४१८७. प्रति सं०३। पत्र सं. ८८ । प्रा० १०४४। ले०काल सं० १६१६ भादवा सूदी १२ । वेष्टन सं० २०५। प्राप्ति स्थान—दि जैन मं० लएकर, जयपुर ।
विशेष-प्रशस्ति अच्छी है।
४१८८. सुदर्शनचरित्र भाषा–पशः कीर्ति । पत्रसं० २८ 1 प्रा० १०३४८ इञ्च । भाषा-- हिन्दी (पद्य) । र० काल सं० १६६३ । ले०काल X । पूर्ण । वेष्टन सं० २८५ । प्राप्ति स्थान-भट्टारकीय दि० जैन मन्दिर अजमेर । विशेष- प्रारंभ
प्रथम सुमरि जिनराय महीतल सुरासुर नाग खग । भव भव पातिक जाय, सिद्ध सुभति साहस' बर्ड ।।१।।
रोहा। इन्द्र चन्द्र पौ चक्कवै हरि हलहर फमिनाह ।
तेज पार न लहि सके जिनगुण अगम अथाह ।।२।। चौपई--
सुमरी सारद जिनवर वानि, करी प्रणाम जोरिकरि पान । मूरख सुमरै पंडित होय, पाप पंक कहि घातै सोय ।।३।। जो कवि ऋवित कहै पुरान, ते मानेहि सो देव की प्रानि । प्रथम सुमरि सारय मन पर, तो कछु कवित बुद्धि को परं ॥४॥ हसचडी. कर वीमा जासू, सिद्ध बुद्धि लघु जान्यौ तासू । मुक्तामनि मई मांग संवारि, कग्यो सूरज किरन पसारि ।।५।। धवनहि कुडल रतननि खचे, नौनिधि सकति प्रापनी रचे । छटेखरा कंठ कठ सिरी, विना सकति प्रापनी परी ।।६।। उजलहार अनुपम हिये, विधना कहै तिसोई किये ।
पा नूपर उजल तन चीर, कनक कांति मय दिपं शरीर ।।७।। सोरठा--- ... विद्या और भंडार जो मांगे सो पावही ।
कित पायौ संसार जायहि बर तेरो नहीं ||८|| दोहा-: मन वच क्रम गुरू चरण नमि परहित उदति जे सार ।
करह समति जैनंदको होइ कवित्त विस्तार ।