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[ प्रन्थ सूची-पंचम भाग
२६५६. प्रमाणनयतत्वालोकालंकार वृत्ति--रत्नप्रभाचार्य । पत्र सं० ३-८७ । प्रा० ११४ ४३ इञ्ज । भाषा-संस्कृत ! विषय-न्याय । २० काल X । ले० काल X । अपूर्ग 1 चेष्टन सं० २६१ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर ।
विशेष—दो प्रतियों का सम्मथमा है 1 टीका का नाम रत्नाकरावतारिका है।
२६६०. प्रति सं०२। पत्रसं० ६६ । ग्रा० १०६४४३ । लेकाल सं० १५५२ श्रासोज बुदी ५ । पूर्ण । वेपन सं. १1 प्राप्ति स्थान--दि० जैन मंदिर लश्कर जयपुर ।
विशेष-विन श्रीवत्स ने वीसलपुर नगर में प्रतिलिपि की थी और मुनि सुजाणनगर के शिष्य पं. श्री कल्याण सागर को भेंट की थी।
२६६१. प्रति सं०३। पत्रसं० ७६ । ले०काल सं० १५.१ 1 पूर्ण । वेष्टन सं० ११४६३ 1 प्राप्ति स्थान - दि० जैन संभवनाथ मदिर उदयपुर ।
विशेष -प्रांत प्राचीन एवं जारी है स पुस्तिका नसार है
प्रमाणनयातत्वालंकारे श्री रत्नप्रभविरचितायां रत्नावतारिकाख्य लघु टीकायं वादस्वरूप निरूपणीयानामष्टमः परिच्छेद समाप्ता। श्री रत्नावतारिकार लघुटीकेति । संवत् १५०१ माघ सुदि १. तिथी श्री ५ भट्टारक थी रत्नप्रमगरि शिष्येण लिखितमिदं ।
२६६२. प्रभागनय निर्णय-श्री यशःसागर गरिन् । पत्रसं० १६ । आ० १० x ४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत । 'विषय-न्याय । र० कालX । से०काल X । वेष्टन सं० २७ । प्राप्तिस्थान-दि. जैन मन्दिर लश्कर जयपुर।
२६६३. प्रमाण निर्णय-विद्यानंदि। पत्र सं० ५७ । प्रा० ११४५ इच । भाषासंस्कृत । विषय-न्याय । २० काल X । ले०काल X । पूर्ण । बेष्टन सं० २१३ । प्राप्ति स्थान-दि. जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर ।
विशेष प्रति प्राचीन है 1 मुनि धर्ममूषण के शिष्य अ. मोहन के पठनार्थ प्रति लिखावी गयीं थी।
२६६४. प्रतिसं० २ । पत्रसं० ५६ । लेकाल x पूर्ण । वेष्टन सं० २०८ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन पंचायती मंदिर भरतपुर ।
विशेष प्रति प्राचीन है पं० हर्षकल्याण की पुस्तक है। कठिन शब्दों के अर्थ भी है।
२६६५. प्रमाण परीक्षा-विद्यानंद। पत्र सं० ७५ । आ. ११४५ इंच। भाषा-संस्कृन । विषय-न्याय । र०काल x ले. काल- 1 पूर्ण । वेष्टन सं. २२३ । प्राप्ति Fथान-दि. जैन अप्रवाल मन्दिर उदयपुर । विशेष-ग्रादिभाग--
जयति निजिताशेष सर्वकांतनीतयः । सत्यवाक्याधियाशश्वत विद्यानंदो जिनेश्वरा ॥
अथ प्रमाण परीक्षा सत्र प्रमाण लक्षण परीक्ष्यते । मुनि श्री धर्म भूषण के शिष्य ब्रह्म मोहन के पठनार्थ प्रतिलिपि की गयी थी।