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________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र ] जिन मन्दिर तहां चार हैं सोभा कहिय न जाय । श्री जिन दर्शन देस्त्र ते आनन्द उर न समाय ।। श्रावक जनी वह वसे प्रापस में बह प्रीति । जिन वागणी सरचा कर पात्रंडी नहीं रीत ।। एक सहम भर आठ सी ऊपरपार। मो संमत सुभ जानियो शुकल यक्ष भगृवार ॥ मंगसिर तिथि पांचों विषै उत्तराषाढ़ निहार । ता दिन यह पूरण कियाँ शिव सुख को करतार ॥ सुल विलास इह नाम है सब जीवन सुखकार । या प्रसाद हम हूं लहै निज प्रातम सुखकार ।। मुखी होहु राजा प्रजा सेवो धर्म सदीव । जैनी जन के भाव ये सुख पार्व सब जीव ।। अन्तिम मङ्गल-- देव नमो अरहन सकल सुखदायक नामी। _ नमो सिद्ध भगवान भये शिव निज सुख हामी ।। साध नमी निरपथ सकल परिग्रह के त्यागी। सकल सुख्य निज थान मोक्ष ताके अनुरागी ।। बन्दों सदा जिन धर्म को देय सर्व सुख सम्पदा । ये गार धार तिहूं लोक में करो क्षेम मङ्गल सदा ।। मंगसिर सुदी ५ सं १८४ में जोधराज कामलीवाल कामा के ने लिखवाया था । १७६४. सुदृष्टितरंगिरणी-टेकचन्द । पत्त० ६३४ । प्रा० १२३४५६ इञ्च । भाषाहिन्दी । विषय-धर्म । र० काल सं० १७३८ । लेकाल सं० १९१० पूर्ण । वेष्टन सं. ३ । प्राप्ति स्थान-- दि० जन पंचायती मन्दिर दीवानजी कामा। १७६५. प्रति सं०२। पत्रसं० ५६.६ । ले. काल सं० १९१० । पूर्ण । वेष्टन सं० ५३७ । प्राप्ति स्थान---उपरोक्त मन्दिर । १७९६. प्रति सं० ३। पत्रसं० २६६ । ले० काल ४ | अपूर्ण । बेष्टन सं० ५३८ । प्राप्ति स्थान-उपरोक्त मन्दिर । १७९७. प्रति सं० ४ । पत्रसं० ३१० । या० १५४८ च । ले०काल ४ । पूर्ण । वेष्टन सं० १४५ । प्राप्ति स्थान—दि जैन खण्डेलवाल पंचायती मन्दिर अलवर। १७६८. प्रतिसं०५। पत्रसं० २-२००। प्रा० १२३४६१ इच। ले०काल । अपूर्ण । वेष्टन सं०३१६ । प्राप्ति स्थान-दि०.जैन मन्दिर बोरसली कोटा । विशेष-२०० से आगे पत्र नहीं है। १७६६. प्रति सं०६। पत्र सं० १५० । प्रा० ११३४७१ इञ्च । लेकाल सं० १९२६ । पूर्ण । वेष्टन सं० ३.६८ । प्राप्ति स्थान दि. जैन पारनाथ मंदिर इन्दरगढ (कोटा)
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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