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________________ १७६ ] विशेष-संस्कृत तथा हिन्दी में टीका भी दी हुई है। १७६१. सुखविलास - जोधराज कासलीवाल । पत्र सं० ६४ । भाषा - हिन्दी | विषय - धर्म । २० काल १८८४ मंगसिर सुदी १४ ० का ० १२३६५४५ प्राप्ति स्थान- ० जैन पंचायती मंदिर भरतपुर । । विशेष – पं० दौलतराम के पुत्र जोधराज ने कामा में सुखविलास की रचना की थी । १७६.२. प्रति सं० २ । प० ३११ ले काल १०८४ पूर्ण । । । स्थान दि० जैन पंचायती मन्दिर भरतपुर । विशेष पोदकर ब्राह्मण से जोधराज ने कामा में लिपि कराई थी। पत्र० २६४० १७६३. प्रति सं० ३ प्राप्ति स्थान उपरोक्त मन्दिर । अन्तिम [ ग्रन्थ सूची- पंचम भाग X १८८६ पूर्ण वेष्टन सं० ५४५ । विशेष -- जो यामें अलग बुद्धि के जोग तें कहीं प्रक्षर अर्थ मात्रा की भूल होय तो विशेष ज्ञानी धर्म वृद्धि मोकू ल्प बुद्धि जानि क्षमा करि धर्म जानि वा को खोध के युद्ध करियो । प्रारम्भ शाम देव अरहन्त को नमीं सिद्ध महाराज । श्रुत तमि गुर को नमत हों सूख विलास के काज 11 येही उ मंगल महा ये च उत्तम सार । इन पत्र को चरणों यह होह सुमतिदावार वेष्टन सं० ५४४ प्राप्ति | जिन वाली धनुस्वार राव कवन महा खकार । खुले पंख अनादि ते मारग पात्रं सार ।। मारग दोयत में कहे मोक्ष और ससार । सुख विलास तो मोक्ष है दुख धानक संसार || जिनवाणी के ग्रन्थ सुनि समोर अपार । साते गुरू उच्च कियो चन के अनुसार ।। उद्यमकियों व्याकरणादिक पढ्यो नहीं, भाषा हूं नहीं ज्ञान । जिनमत सम्पत कियो, केवल भक्ति जु मानि ॥ भूल चूक अक्षर श्ररथ, जो कुछ यादें होय । पंडित सोय सुधारिये, धर्म बुद्धि धरि जोग 11 दौलत सुन कामा बसे, जोध कासलीवाल । निजसुख कारण यह कियो, सुख मिलारा गुणमाल || सुखविला सुखधान है। सुखकारण सुखाय । सुख का सेयों सदा शिव सुख पावो जाय || कामा नगर सुहावनं, प्रजा सुखी हरपंत नीत सहत सहा राज है, महाराज बलवन्त ।।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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