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( सात )
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ग्गंध भाडार दिन मन्दिर पार्श्वनाथ इस भण्डार में ३३४ हस्तलिखित प्रष एवं गुटके हैं । अधिकांश ग्रंथ संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के है तथा पूजा, कथा प्रधान एवं स्तोत्र व्याकरण विषयक है । इस भण्डार में ब्रह्म जिनदास विरचित रामचन्द्र रास' की एक सुन्दर पाण्डुलिपि है। इसी तरह मनामरस्तोत्र हिन्दी गद्य टीका की प्रति भी यहां उपलब्ध हुई है जो हेमराज कृत है।
प्रथ भण्डार दि० जैन मंदिर प्राविनाथ
इस मन्दिर के ग्रम भण्डार में १६८ हस्तलिखित ग्रथों का संग्रह है इस संग्रह में ज्योतिष रत्नमाला की सबसे प्राचीन प्रतिलिपि है जो संवत् १५१६ में लिपि की गई थी। इसी तरह समारनर्मामृत, त्रिलोकसार एवं उपदेशमाला को भी प्राचीन प्रतियां हैं।
प्रय भण्डार दि० जन मन्दिर अभिनन्दन स्वामी इस नय भण्डार में ३६८ हस्तलिखित प्रथों का संग्रह है । यह मंदिर भट्टारकों का केन्द्र रहा पा और यहां भट्टारका गादी भी थी, और संभवतः इसी कारण यहाँ ग्रंथों का अच्छा संग्रह है। भण्डार मे अपभ्रंश भाषा की कृति 'करकण्ड चरिउ को' अपूर्ण प्रति है ओ संस्कृत टीका सहित है । संग्रह अच्छा है तथा ग्रंथों की प्राचीन प्रप्तियां भी उल्लेखनीय हैं।
प्रथ मार दि. जैन मंदिर महावीर स्वामी यह मन्दिर विद्वानों का केन्द्र रहा है। यहाँ के नथों का अधिकांश संग्रह हिन्दी भाषा के प्रयों का है । इसमें पुराण, कथा, पूजा एवं स्तोत्र साहित्य का बाहुल्य है । ग्रयों की संख्या गुटकों सहित १७२ है । अधिकांश ग्रंथ १५-१६ वीं शताब्दी के हैं ।
ग्रंथ भण्डार दि. जैन मंदिर नागवी (नेमिनाथ)
नेमिनाथ के मंदिर में स्थित यह नय मण्डार नगर का महत्वपूर्ण भण्डार है। यहां पूर्ण ग्रयों की संख्या २२२ है जो सभी अच्छी दशा में है । लेकिन कुछ प्रय अपूर्ण अवस्था में हैं जिनके पत्र इधर उधर हो गये हैं इस संग्रहालय में 'माधवानल प्रबन्ध' ज. गोकुल के सुत नरसी की हिन्दी कृति है, की संवत् १६५५ की अच्छी प्रति है । श्रेणिक चरित्र (र० काल सं० १८२४-दौलत प्रोसेरी) चतुर्गतिनाटक (डालूराम), आराधनासार (विमलकीति), भागवत पुराण (श्रीधर) प्रादि के नाम उल्लेखनीय है । इस संग्रह में एक गुटके में बुचराज कषि की हिन्दी रचनामों का अच्छा संग्रह है।
इस प्रकार बूदी नगर में हस्तलिखित ग्रंथों का महत्वपूर्ण संग्रह हैं ।
नैरणवा बूदी प्रांत का नैणवा एक प्राचीन नगर है जो बूदी से ३२ मील है और रोड से जुड़ा हुआ है। यह नगर प्रारम्भ से ही साहित्य का केन्द्र रहा है । उपलब्ध हस्तलिखित ग्रंथों में प्रद्युम्नचरित की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि