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________________ ११६० ] [ अन्थ सूची-पश्चम भाग प्रशस्ति संयत् १७२१ वर्षे कोच सुदी : कोरीडा शिला ने धी शांतिनाथ चैत्यालये ब० श्री गणदास तत् शिष्य थी प्राण्येन स्वहस्तेन लिखितेयं मेघमाला संपूर्ण ।। सय १११५ से ११६२ तक के फल दिये हैं। २. ग्रह नक्षत्र विचार, ताजिक शास्त्र एवं वर्षफल (सरस्वती महादेवी वाक्म)। ज्योतिष संबंधी गुटका है। १०३१८. गुटका सं० ३६ । पत्र सं. १५० । प्रा० ५४४ इन्च । भाषा-संरवृत । ले० काल सं० १७१४ व १७२२ । पूर्ण । वेष्टन सं० ४४६ । निम्न उल्लेखनीय पाठ है१. पूजा अभिषेक पाठ संस्कृत २. ऋषिमंडल जाप्य विधि संस्कृत ले० काल सं० १७२२ माघ सुदी १५ प्रशस्ति-१७२२ वर्षे माघ सुदी १५ शुक्र श्री मूलसंधे प्राचार्य श्री कल्याणकीति शिष्य बचारि संघ जिषाना लिखित पंडित हरिदास पठनार्थ । ३. नरेन्द्रकीति गुरु नष्टक संस्कृत ४, जिन सहस्त्रनाम संस्कृत ५. गणधर वलय भ. सकलकीति संस्कृत ले०काल सं० १७३४ प्रशस्ति--सं० १७१४ वर्षे माघ बुढी २ भीमे श्री मूलसंचे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यावन्ये भट्टर श्री रामकीर्ति तत्प? भ० श्री पद्मनंदि तत्प? भ० देवेन्द्रकीति तत् गुरु भ्राता मुनि श्री देवकीति तत् शिष्याचार्य स्त्री कल्याणकीति तत् शिष्य क० चदिसंधि निष्युरणा लिखितं पं० अमरसी पठनार्थं । ६ चार यंत्र हैं-- जलमंडल, अग्निमंडल, नाभिमंडल वायुमंडल । ७. पट्टावलि हिन्दी भट्टारक पावलि दी हुई है। ८, सरस्वती स्तुति आशाधर संस्कृत १०३१६. गुटका सं० ३७ । पत्रसं० ५४ । आ० ७४७ इञ्च । भाषा -हिन्दी-संस्कृत । लेकाल X । पूर्ण । वेष्टन स'० ४४८ । विशेष --ौषधियों के नुसक्षे, यंत्र मंत्र तंत्र प्रादि, सूर्य पताका यंत्र, चौसठ योगिनी यंत्र लावणीजसकलि । अन्तिम... कोट अपराध में कोना तारा क्षमा करो जिनवर स्वामी । तीन लोक नाइक साहिब राद जीच अन्तर जामी ।। जराकीति की अरज सनीने सखो रोबक तुम पाह। दीनदयाल कुषा निधि सागर प्रदिनाथ प्रभु सखदायी ।।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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