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[ अन्य सूची-पंचम भाग
अन्तिम पाठ
संवत चौदस में सदसटो, ज्येष्ठ पालक पंचमः तिथि हटे। कवीवर वारे घोघा नपरे, अति उतंग मनोहर शुभ परे ।।२०७॥ अष्टम जिनवर ने प्रासादे सांभलियो जिनगाना सुखारे । रलकीर्ति पदवी गुरण पुरे, रचियो छंद कुमुद शशी सूरे ॥२०८।। सोभलतां भनर्ता प्रानंद, मव प्रातप नामे सुख कंद । दुख दरिद्र बहु पीडा नाले, रोग शोक नहि प्राव पास ।।२०६॥ शाकिनी डाकिनी करे चकरं भूत प्रेत जावे सहू पूरं ।
रोग भगंदर विपासे, सुख संपति भविजन परकासे २१॥ कलस--
उत्कट बिकट कठोर रोर गिरि भंजन रात्यवि । विहित कोह संदोह मोहतम प्रोध हरण रवि । विहित रूप रति भूप चारु गुण कूप विनुत कधि 1 धनुष पांच सै पचीस वरत सहेय सनू छवी ।। संसार सारि ल्यागं गतं विवुद्ध वृद बंदित चरण । कहे कुमुदचन्द्र भुजबल जयो सकल संघ मंगल करण ॥२११।।
इति बाहुबलि छंद संपूर्ण । २. नेमिनाथ को छंद हेमचन्द्र हिन्दी -
थी भूषण के शिष्य) विशेष—यह रचना २०५ पचों की है। रचना का प्रादित भाग निम्न प्रकार हैप्रारम्भ
विदेह विमल वेषं स्तंभ तीर्थस्य नायकं ।
गीराध नौतमं वीरं छंद प्रारंभ सिद्धये ॥११॥ छंद बाल---
प्रथम नमोह जिन मुखजेह बज बज नादे सकल विदेह । वदन सुखंदे निर्मल कंदे विभुवन वदे भात सुचंदे ॥२।। झलकति झल्ले झगमग गल्ले, चतुर मुजाय गण गण चल्ले ।
कमंडल पोथी कमल मुहस्ती मधुर वचेना शुभ वाचती ।।३।। मध्य साग
राय मनोहर घारिनी नारी पतिवरतानो व्रत धर नारी । समरीराय निज चित्त मझारी, इम अनुभवता सूख संसारी ||८|| गधी विनात पेत्त पत्रारी, सोम मुखी सोमांति मोरी । नेत्र जीति चकित चकोरी, साहन की गज गमन विहारी ।।६।।