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________________ गुटका संग्रह ] सिजी । दानदेय समी फल लीजे, जुनो डोर ने कपड वीजे ॥१८॥ पहु न होय की मिट्टी चाले वचन थालि तुम जो राखेँ । बजि न कीजे आस पराव, प्रारंभज्यो काम त्यो नीरवहि ॥ १६ ॥ नित प्रतिदान सदाही दीदे, दुरणा उपरि ब्याज न जीर्ज धरिही रात्री हीगा कुल नारि, मुक्त उपाय संतोषास्तरी ||२०|| विसेषीय हसि हमीखाय, बीगारी बहु ज परिवरि जाय । वीरा पूल मोटी छाडी, बीरासी गय गयाडो मीठो ॥ २१ ॥ बीगारी थिए सुधार घोटो, वीशस सेवग माहर बोडो । बीसी राजु मंत्री नो थोडो, प्रचगीट न भोसिकुड ॥२२॥ बुद्धि होइ फॉर सो नर जी, मधीभा के घरिनी। हरियम को जेठडी पाणी मगानीवन सुकाल न जाशी ॥२३॥ मंत्र न कीजे हीयडी कुछ सील बीस नारी पराय चूडी । ऐसी मी सुगीरी पुन्या, लाज न कीजे मागत कन्या ||२४|| पाजीयो ब्रह्मा होय मवेद भलावी भाषण होय वाच्या होय सबाज करावो, कायथ होय, सलेखो भरगावी ॥ २३ ॥ कुल भारगौ । छोडो करमा सगजीमील सुरोज घरमा । बुधी प्रगास पढीर विचारों, वीरो न भावो कहि सहसा ||२६|| ऐसी सीख सुर्खे सहुकोय, कला सुनानी डु होष । कही देह परषोत्तम पुत्ता, करो राज परिवार संजुता ॥ ७२ ॥ संवत् १६०६ मिठी पौष सुदी १० बुधीप्रमास समाप्त लिखित पंडित रुडा, मिखामत पंडित | ३०२. गुटका सं० १६५ | पत्र सं० १३८ । श्रा० ५x५ इन्च । भाषा संस्कृत हिन्दी 1 नेकन X 1 पू सं०६६। विशेष- - निम्न रचनाओं का संग्रह है तत्वार्थ सूत्र रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषा १३०३. गुटका सं० १६६ । पत्र० ०काल स० १६०७ ज्येष्ठ खुदी अमावस । प्रपूर्ण विशेष- निम्न पाठों का संग्रह है प्रादिववार कथा [ ९७३ १४- ११० १ वेष्टन सं० ८६० ० ६६ × ५ ० ६३४५३ उमास्वामी सदासुखासनीवाल इस भाषा हिन्दी | भाऊकवि
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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