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गुटका संग्रह ]
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चन्द्रसेन
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१६६३
सीतासतु भगौतीदास हिन्दी पद्य
२३०-२७०
आषाद सुदी ३ ज्येष्ठ जिनवर कथा ब. रायमल्ल हिन्दी १६२५ २७१-७४
सांभर में रचना की गयी थी चन्दनमलयागिरि कथा
२७५-८५ - मृगीसंबाद देवराज
२८६-३०१ -
चैत सुदी १ रविवार वसुधरि चरित्र स्त्री भूषण
१७०६
३०२-३२१ हनुमंत कथा
० रायमल्ल पाशाकेवली
३५६-६० मालीरास
जिनदास गौतम पृच्छा
सीता सतु-भगोतीदास आदि भाग
ॐकार नमों धरि भाऊ, मृगति बरंगरिश बरु जगराऊ । सारद पद पंकज सिर नाऊ. जिह प्रसादि रिधिसिधि निधि पाऊ !! गुरु मुनि महिंदसेन भट्टारक, भव संसार जलधि जल तारक ।
तासु चरण नभि होत अनंदो, बढइ बुधि जिम दुतिया चंदो।। मध्य भागसोरठा
सीय न हुइ भय भीय करे रूपि रावण पणे ।
हरि करि कारह घिसाय भूत प्रेत वेताल निसि । ५६।। चौपर्स
खम्गु उपसर्गु करइ आमा, सो सुमरइ चिति लछिमनरामा । गय रनि रवि उग्यो दिनेसू, हुइ निरास घरि गयो यो ।.५० ॥ बालु पीडत तेल न लहिये, फणि मस्त किमणि झिनसन गहिये ।
सतिय पयोहर को फरि छावइ वहनि परसि तनि को जाँग जीवइ ।।५।। अन्तिम
बलि विक्रम नृप करत सम सुखर मुभा सुजाण ।
मकबर नंदण प्रति वली सयल जगति तिस प्रांण ।। ६६|| सोरठा
देस कोसु गज बाजि जासु नमहि नृप छत्रपति । जहांगीर इक राजि सीता सतु मइ मनि कीया । ६७।। गुरु गुण चंदुरिसिंदु बखानिए । सकल चन्दु तिह पट्टि जगतमहि जानिए ।
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