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गुटका-संग्रह ]
६०६३. गुटका सं० १८ । पत्र सं०७० । मा० ६x४ इ० । भापा-हिन्दी | ले. काल सं० १८६४ ज्येष्ठ बुदी ss | पूर्ण । ३० सं० १५२७ ॥ १. चतुर्दशीकथा.
टीकम
हिन्दी २० काल सं० १७१२ विशेष-३५७ पध हैं। २. कलियुग की कथा
द्वारकादास विशेष-पचेवर में प्रतिलिपि हुई थी। ३. फुटकर कवित्त, रागों के नाम, रागमाला के दोहे तथा बिनोदोलाल कृत चौबीसी स्तुति है । ४. कपडा माला का दूहा
राजस्थानो
सुन्दर
विशेष- इसमें ३१ पद्यों में कवि ने नायिका को अलग २ कपड़े पहिना कर दिरह जागृत किया तथा किर
पिय मिलन कराया है। कविता सुन्दर है।
६०६४. गुटका सं० १६ । पत्र सं० ५७-३०५ । भा० १३४६३ ३ । भाषा-हिन्दी संस्कृत । विषयसंग्रह । ले० काल सं० १६९० द्वि० वैशाख सुदी २ । अपूर्ण । वे० सं० १५३० । १. भविष्यदत्तचौपई
या रायनल्ल
हिन्दी अपूर्ण २. श्रीपालचरित्र परिमल्ल
१०७-२८३ विशेष-कवि का पूर्ण परिचय प्रशस्ति में है । अकवर के शासन काल में रचना की गई थी। ३. धर्मरास ( प्रायकाचाररास) x
२८३-२६८ ६०६५. गुटका सं०२० । पत्र सं० ७३ । प्रा० ६x६३ इ० | भाषा-संस्कृत हिन्दी । ल. काल सं. १८३६ चैत्र नुदी ३ । पूर्ण । वै० सं० १५३१ ।
विशेष-स्तोत्र पूजा एवं पाठों का संग्रह है। बनारसीदास के कवित्त भी हैं। उसका एक उदाहरण निम्न है:--
कपडा को रौस जाणे हैवर की हौस जाणे ।
न्याय भी मवेरि जाग राज रौस मारिणी ।। राग तो छत्तीत जाणे लषिण बत्तीस जाणे ।
धूप मतुराई जाणे महल में माणिवी ।। बात जाणे संबाद जाणे खूवी खसबोई जाणे । सगपग साधि जारगमर्थ को जाणिवी ।
कहत बनारसीदास एक जिन नांव विना ।
................ वो सब जाणिवी ।।