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________________ ७६४ । [ गुटका-संग्रह अन्तिम-भवति भी षर्द्धन ब्रह्म एह वाजी भवियरण सुख करइ x प्रपन्नश हिन्दी ३. सम्यक्त्व जयमाल ४. परमार्थ गीत रूपचन्द्र ५. पद-हो मेरे जीम तू कत भरमायो, तू चेतन यह जड परम है मामै कहा लुभायो । मनराम ६, मेवकुमारगीत ७. मनोरथमाला भचलकीति अचला तिहि तणा गुण गाइस्यों, ८, सहेलीगीत पूनो सुन्दर महेल्यो हे यो संसार प्रसार मो चित में या अपनी जी सहेल्यो है ज्यो रांचे सो गवार तन धन जोबन पिर नहीं 1 ह. पद मोहन हिन्दी जा दिन हँस चले घर छोडि, कोई न साथ खड़ा है गोडि । जण जण के मुख ऐसी वाणी, बडो वेगि मिलो प्रन पाणी ।। प्रण विडव उनगै सरीर, खोसि खोसि ले तनक चीर । चारि जरणा जङ्गल ले जाहि, पर मैं घडी रहा दे नाहि । जबता बूड विडा में वास, यो मन मेरा भया उदास । काया माया झूठी जानि, मोहन होऊ भजन परमाणि ।।६।। १०. पद हर्षकीति हिन्दी नहि छोडौ हो जिमरान नाम, मोहि और मिथ्यास से क्या बने काम । मनोहर हिन्दी सेव तो जिन साहिब की कीजै नरभव लाहो लीजे १२. पद हिन्दी जिणदास स्यामदास बनारसीदास १३. " १४. मोहविवेकयुद्ध १५. वादशानुप्रेमा
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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