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________________ गुटका-संग्रह ) 1 ६८७ ५६०८. गुट का सं० २.१ । पत्र सं० ११-१७७ । प्रा० १०x४६ ईन्च | भाषा-हिन्दी । १. बिहारी सतसई सटीक टीकाकार हरिचरणदास । टीकाकाल सं० १८३४ । पथ सं० ११ से २३१ । ले. काल सं० १८५२ माघ कृष्णा ७ रविवार । वियोष-पुस्तक में ७१.४ पद्य हैं एवं ८ पद्य टीकाकार के परिचय के हैं। अन्तिम भाग-- पुरुषोत्तमदास के दोहे हैं बद्यपि है सोभा सहज मुक्त, न तऊ सुवेग । पोये और कुठौर के लरमें होत विशेष ११७१।। इस पर ७१५ संख्या है। वे सातसौ से अधिक जो मोहे है वे दिये गये हैं। टीका सभी को दी हुई है। केवल ७१४ की जो कि पूरूषोत्तमदास का है, टीका नहीं है। ७१४ दोहों के मागे निम्न प्रशस्त दी है। दोहा सालगामी सरजु जह मिली मंगसो प्राय । अन्तराल में देस तो हरि कवि को सरसाय ॥१॥ लिखे दहा भूषन बहुत भनवर के अनुसार। कहुं औरे कहुं और हू निकलेंगे लङ्कार ।।२।। सेवी जुगलजसोर के प्रननाथ जी नांव । सप्तसती तिनसों पड़ी बसि सिंगार बट ठांब ॥३॥ अमुना तट शृङ्गार वट तुलसी विपिन सुदेस । सेवल संत महंत जहि देखत हरत कलेस ।।४।। पुरोहित श्रीनन्द के मुनि सडिल्य महान । हम हैं ताके गौत में मोहन मा जजमान ॥५॥ मोहन महा उदार तजि और जाचिये काहि । सम्पत्ति सुदामा को दई इन्द्र लही नहीं जाहि ।।६।। गहि अंक सुमनु तात ते विधि को बस लखाय । राधा नाम कह सुनै प्रानन कान बढाय ।।७।। संवत् मठारहसौ विते ता परि तीसरु वारि । जामा पूरो क्रियो कृष्ण चरन मन धारि ।।६।।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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