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________________ [ गुटका-संग्रह A धर्म दुहेलो जैनको, छह दरसन जे डी परवान । भाग जन भुणिजे दें काल, भव्य जीव चित संभलो ॥ पढ़. वित्त सुख होई निधान, धर्म दुहेलो जैन को ।। ३ ।। दूजा बदों सारद माई, भूला माखर प्राणी हाइ ।। कुमति बलेस न उपजे, महा सुमति दो अधिकाइ ।। जिणधर्म रासो वर्ण उ, तिहि पळत मन होइ उछाह ।। धर्म दुहेलो जैन को ।। ४ ।। ऊभी जीमण जीवै सही, मागम बात जिणेमुर कही । कर कमां प्राहार से, ५ अट्ठाइस मूलरा जा ॥ धन जी जे पालही, ते भनुक्रम पहुंचे निवारण । धर्म दुहेलो जैन को ||१५२।। प्रन्तिम मूढ देव गुरुशास्त्र बखारिण, - षट् प्रनायतन जारिम । माठ दोष शङ्का मादि दे, प्राठ मद सौ तजे पच्चीस ।। ते नि सम्यक्त फले, ऐसी लिघि मास जगदीश । धर्म दुहेलो जैन को ॥१५॥ इति श्री धर्मरासी समायता ।।१।। १७९० किग सुदी २ सांगानायर मध्ये | ५५५२. गुट का सं० १३८ । पत्र सं० ५ | RTO EXE इंच । भाषा संस्कृत | विषय - पूजा । विशा-सिक्षपूजा है। ५४५३, गुटका सं० १७१ । (त्र सं० ६ । ग्रा० ६४७ ह व । भाषा-हिन्दी । विषय -पूजा । विशेष—सम्मेदशिखर पूजा है : ५५५४ गुटका सं० १७ । पत्र सं० १५-६- ! प्रा० ३४३ च । भाषा संस्कृत हिन्दी । ले. काल सं० १७६८ | साबण सुदी १० | विशेष-पूजा, पद एवं विनक्षियों का संग्रह है। ५५५. गुदका सं०७२ । पत्र सं० १८५ । प्रा० ६.४ च । अपूर्ग । दशा--जीएम् । विशेष -मायुर्वेद के नुराखे, मन्त्र, तन्त्रादि सामग्री है। कोई उल्लेखनीय रचना नहीं है।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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