________________
[ गुटका संग्रह
६३२ ] ७. सुगंधदशमी कथा
रामकीर्ति के शिष्य
अपना
३८-४१
विमल कीति
आदि भाग
अन्तिम पाठ
पणवेप्पिा सम्मद जिरणेसरहो जा पृथ्वसूरि प्रागम भणिया । रिणसुरिणज्जा भवियह इक्कमना, कहकमि सुगंधदसमी हितशरिणया ।। दसमिहि सुअंध बिहारगुकरेविरणु तइय कप्प उप्पण्ण मरैविरणु । चउदह प्राहरयेहि पसाहिम सागी सुहइ भुजइ अविरोलिय ।। दुहवी मण्डा पुरु सुरु दुल्लहु, राउ पयाउ दयाजण बलव । मानस सुदरि गत्ति उपएर मयरणावलि नामि संपुष्पणी ।। दिणि दिणि कुमरि वियाब हुँ भती भव्वलोय माणस मोहंती। सामबष्ण मणगावि सुरहि सरगु जिणवरु सामिउ पज्जइ प्रणु दिए ।।
गु सदसहरा : तद् व छन्न का वष्मण रण सकइ । धम्मवंत पेखि रणरणहि पोमाइयइ धम्म प्रसहि । रायं सापरिणाविय जामहि, पृत्त कलत्तहि बद्दियतामहि ।। रामकित्ति गुरुविणउ करेविरतु विगु विमल कीति महिपलि पडेविगु । पछइ पुरणु तव पररा करेविरणु सइ प्रणुक्रमेण सोमबखुलहेमइ ।। जो कर करावइ एहविहि बक्खारिणय विवियह दावेद। सो जिरणगाह भासियह सग्गु मोक्षु फब पावन ॥ ८ ।।
इति सूगंधदशमोकथा समाप्ता
अपनश
८. पुष्पाञ्जलि कथा प्रारम्भ
जज जय प्रव्ह जिसर ह्ययम्मीसर मुलिसिरीवरगणधरण ।
अयसय गणभासुर सहयमहीसर जुक्ति गिराधर समकरण ॥६॥
अन्तिम धत्ता
वलवत्तरिगणि रयणकित्ति मुरिंग सिस्स वहिवं दिज्जा । भावकित्ति जुन अनंताकत्तिथुरु पुष्फुजलि विहि किंजइ ॥११॥
पुष्पांजलि कथा समाप्ता