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[ गुटका-संग्रह
६१४ ]
मानव जन्म बड़ो जगमान के काज बिना मतु कूप में डारो।
नेमी कहे सुन राजुल तू सब मोह तजि ने काज सवारो ।। १८ ॥ अन्तिम भाग-राजुलोवाच
यावक धर्म क्रिया सुभ श्रेपन साप कि संगत वेग सुनाइ । भोग तजि मन मुध करि जिन नेम तशी जव संगत पाई। भेद अनेक करी दृढ़ता जिन माण की सब बात सुनाई।
लोच करी मन भाव धरी करी राजूलनार भई तद बाई ।। ३१॥
पादि रचन्हा विवेक सकल युक्ती समझायो । नेमिनाथ हर चित्त बहु राजस कु समाभायो ।। राजमति प्रबोध के सुध भाव संपम लीयो । ब्रह्म ज्ञानसागर कहे बाद नेमि राजुल कीयो ॥ ३२ ।।
॥ इति ने मीरवर राज्जल विवाद संपूर्णम् ।।
विनयकीति
३२-३३
४, अष्टाहिकाव्रत कथा ३. पार्श्वनाथस्तोत्र
हिन्दी संस्कृत
पद्मप्रभदेव
६. शांतिनाथस्तोत्र
मुनिगुरषभद्र
७, वर्धमानस्तोत्र ५. चितामणिपार्श्वनाथस्तोत्र
६. निर्वाणकाण्ड भाषा
भगवतीदास
१०. भावनास्तोत्र ११. गुरुविनती १२. ज्ञानपच्चीसी
धानतराय
भूधरदास बनारसीदास
४१-४२
१३. प्रभाती मजरूभंवर वे
गुलाबविशन
१४. मो गरीब कूसाहन तारोजी १५. अब तेरो मुख देख १६. प्रात इवो मुभर देव
टोडर
भूधरदास