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गुटका-संग्रह ]
१. संयोगबत्तीसी
२. फुटकर रचनाए
१. राजुल पीसी
२. वेतनचरित्र
३. नेमीश्वरराजुल विवाद
मानक वि
१-२५
X
२६-५६
५४३० गुटका सं० ५० पत्र सं०७४ | प्रा० ८४५ इ । ले० काल १८६४ मंगसर सुदी १५ । पूर्ण । विशेष गंगाराम वैद्य ने सिरोंज में ब्रह्मजी संतसागर के पठनार्थ प्रतिलिपि की थी।
विनोदीलाल लालचंद
हिन्दी
भैया भगवतीदास
ब्रह्मज्ञानसागर
नेमीश्वर राज को झगड़ो लिखने ।
आदि भाग- राजुल उवाच
नेमीश्वर उवाच
नेमीश्वरोबाच
हिन्दी
मध्य भाग-राजुलोवाच
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करि निरधार तजि घरवार भये व्रतधार
धूप अनूप धनाधन धार तुबाट सहो भूख पियास अनेक परिसह पावन हो कत्तु राजुल नार कहे सुविचार जु नेमि कुवार
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भोग तो छोड़ी करो तुम योग लियो सो कहा मन ठारणों । सेज विश्वित्र तु लाई ग्रनोपम सुंदर नारि को संग न जानू ॥
सूक्र तनु सुख छोड़ि प्रतक्ष काहा दुख देखत हो अनजानु । राजुल पूछत नेमि कुबर कू योग विचार काहा मनातू ।। १ ।।
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सुन रि मति मुठ न जान जानत हों भवं भोग सन जोर घंटें हैं। पाप बढे खटकर्म घके परमारथ को लब पेट फटे हैं | श्राखिर दुख हो दुख रटे हैं । बिना नहि कर्म्म कटे हैं ॥ २ ॥
इंद्रिय को सुख किंचित्काल ही
नेमि कुवर कहे सुनि राजुल योग
लोक गोसाई ।
काई के तोई ॥
सिद्धन श्रई ।
सुमु मन लाई ।। १७ ।।
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करहेको बहूत करो तुम स्थापनप येक सुनो उपदेस हमारो ।
मोहि भोग किये भव डूबत काज न येक सरे जु तुम्हारी ||
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